Tuesday, February 07, 2012

"खुशियों का दौर भी कभी आ ही जायेगा...!!
ग़म भी तो मिल रहे हैं, तमन्ना किये बगैर ...!!"
 


महकती रात शराबों से प्यार करता था
उन दिनों मैं भी गुलाबों से प्यार करता था ..


हज़ारों ऐब हैं मुझमें, नहीं कोई हुनर बेशक
मेरी ख़ामी को तू ख़ूबी में यूँ तब्दील कर देना
मेरी हस्ती है इक खारे समंदर-सी मेरे मौला!
तू अपनी रहमतों से इसको मीठी झील कर देना



मैं खुल के के हंस तो रहा हूँ फ़कीर होते हुए ..
वो मुस्कुरा भी ना पाया अमीर होते हुए...    


एक चिराग सा दिन रात जलता रहता हूँ..
मैं थक गया हूँ, हवा से कहो, अब बुझा दे मुझे..
बहुत दिनों से मैं इन पत्थरों में पत्थर हूँ..
कोई तो आये ज़रा देर को रुला दे मुझे...   

(आभार: मेरे कुछ अपने, जो मेहनत करके खुबसूरत पंक्तियाँ गढ़ते हैं...)


1 comment:

  1. हज़ारों ऐब हैं मुझमें, नहीं कोई हुनर बेशक
    मेरी ख़ामी को तू ख़ूबी में यूँ तब्दील कर देना
    मेरी हस्ती है इक खारे समंदर-सी मेरे मौला!
    तू अपनी रहमतों से इसको मीठी झील कर देना
    Kya gazab kee panktiyan hain!

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