Saturday, February 04, 2012

कोई तो ध्यान दो इधर !!

दुनियाभर के पर्यटक उदयपुर क्यों आते है ?? जवाब आसान है. यूँ तो बहुत कुछ है उदयपुर में देखने, महसूस करने के लिए पर मुख्यतः यहाँ की झीलें निहारने के लिए विदेशी पर्यटक और हमारे अपने देशवासी भी बार बार मेवाड़ का रुख करते है.  किन्तु आज अगर झीलों की दशा पर गौर करें तो पाएंगे कि शायद हम लोग हमारी विरासत संभाल नहीं पा रहे. मेवाड़ के महाराणाओ ने भी नहीं सोचा होगा कि उनके सपनो की कालांतर में हकीकत कुछ और होगी. अगर आप हमारी बात से इत्तेफाक नहीं रखते तो चलिए आज आपको शहर की झीलों का भ्रमण करा ही देते है.

शुरुआत करते हैं फतहसागर से. मुम्बईया बाजार में आपका स्वागत है.  आप आराम से किनारे पर बैठिये. ब्रेड पकोडे का आनंद लीजिए.. यहाँ की कुल्हड़ काफी का स्वाद स्वतः मुह में पानी ला देता है.  पर गलती से भी नीचे  झील में झाँकने की भूल मत कीजिये. आपको शहर की खूबसूरती पर पहला पैबंद नज़र आ जायेगा. जी हाँ.. इतनी गन्दगी.. पानी में इतनी काई. न तो नगर परिषद की टीम यहाँ नज़र आती है न ही झील हितैषी मंच... ! वैसे आप भी कम नहीं है.. याद कीजिये, कितनी बार काफी गटकने के बाद आपने कुल्हड़ या थर्मोकोल गिलास कचरा  पात्र में डाला.. न कि झील में.. अजी कुल्हड़ तो मिट्टी का है, पानी में मिल जायेगा...बेहूदा जवाब नहीं है ये ? आगे बढ़कर फतहसागर के ओवरफ्लो गेट को तो मत ही देखिएगा. यहाँ गन्दगी चरम पर है. 

पिछोला घूमे है कभी ? सच्ची !! चलिए एक बार फिर पिछोला की परिक्रमा करते है . कितना खूबसूरत दरवाज़ा है. नाम चांदपोल. वाह ! बेहतरीन पुल. पर गलती से भी चांदपोल के ऊपर से गुज़रते वक्त दायें-बाएं पिछोला दर्शन मत कीजियेगा.. आपको मेरी कसम. अब मेरी कसम तोड़कर देख ही लिया तो थोडा दूर लेक पेलेस को देखकर अपनी शहर की खूबसूरती पर मुस्कुरा भर लीजिए, पुल से एकदम नीचे या यहाँ-वहाँ बिलकुल नहीं देखना.. वर्ना पड़ोस की मीरा काकी, शोभा भुआ घर के तमाम कपडे-लत्ते धोते वहीँ  मिल जायेगी. आप उनको पहचान लोगे, मुझे पता है. पर वो आपको देखकर भी अनदेखा कर देगी..!जैसे आपको जानती ही नहीं.  चलिए उनको कपडे धोने दीजिए. आप तब तक पानी पर तैर रही हरी हरी काई और जलकुम्भी को निहारिए.
झीलों के शहर की तीसरी प्रमुख झील स्वरुप सागर की तो बात ही मत कीजिये. पाल के नीचे लोहा बाजार में जितना कूड़ा-करकट न होगा,उतना तो झील में आपको यूँ ही देखने को मिल जायेगा. याद आया !वो मंज़र..जब झीलें भर गयी थी और इसी स्वरुप सागर के काले किवाडों से झर झर बहता सफ़ेद झक पानी देखा था. पर फ़िलहाल पानी मेरी आँखों में आ गया.. न न झील के हालात को देखकर नहीं, पास ही में एक मोटर साइकिल  रिपेयरिंग की दूकान के बाहर से उठते धुएं ने मेरी आँखों से पानी बहा ही दिया.

कुम्हारिया तालाब  और रंग सागर . क्या ... मैंने ठीक से सुना नहीं...आपको नहीं पता कि ये कहाँ है ! अजी तो देर किस बात की. अम्बा माता के दर्शन करने के पश्चात वहीँ  अम्बा पोल से  अंदरूनी शहर में प्रवेश करते है (शादी की भीड़ को चीरकर अगर पहुच गए तो) तो पोल के दोनों तरह जो  दिखाई दे रहा  है, वो दरअसल झील है. ओह..याद आ गया आपको. "पर पानी कहाँ है. !" कसम है आपको भैरूजी बावजी की. ऐसा प्रश्न मत पूछिए. ये झील ही है पर देखने में झील कम और "पोलो ग्राउंड " ज्यादा लगते है. वजह साफ़, पानी कम है और जलकुम्भी ज्यादा. चलिए अच्छा है. अतीत में ही सही, पर है तो झील  ही न. 
बस सवाल यही है.. क्या हम सिर्फ माननीया सभापति महोदया के भरोसे बैठेंगे... या इस बात का इन्तेज़ार करेंगे कि कोई रहनुमा आएगा झीलों का रूप सुधारने  के लिए... !! क्या हम कभी अपने सामाजिक सरोकारों के प्रति भी सजग होंगे. क्या सोचना है आपका ... मुझे सुनाई नहीं दे रहा. ज़रा लिखकर बताइए, ताकि अमिट रहे..और हाँ,लिखने के बाद कहीं  आप ने मनाकर दिया, , तो हम आपको पकड़ लेंगे. आपके लिखे कमेन्ट के माध्यम से.... ज़रा सोचिये.

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