Saturday, January 28, 2012

लो बसंत आ ही गया. ..


दुनिया भर की टेंशन, फेसबुक-ट्विटर पर खुद को खोजते, इतनी सारी व्यस्तताओं और उलझनों के बीच हमारे मन का कोई हिस्सा अपने "होने" के एहसास को बचाने की भरसक कोशिश करता है और हमें बार बार ये एहसास कराता है कि हमारे अन्दर कुछ "अनूठा" अभी भी जिंदा है...मरा नहीं है.. हम अभी भी इतने "मेकेनिकल" नहीं हुए है, जितना हम अपने आप को मान लेते है..

और इन्ही तमाम उलझनों और टेंशनो के बीच हमारे मन ने आज खेतो में उगी पीली फसल और उदयपुर की सड़कों पर आँखों में घुस रहे छोटे छोटे कीड़े "मोयला" (जिनसे सब डरते है) ने हमें जाता ही दिया है कि लो ऋतुराज बसंत आ ही गया. यूँ भी देखा जाये तो ये ऋतुएं किसी कलेंडर की मोहताज तो होती नहीं... हमारा मन ही इन्हें समझ जाता है... सर्दी किसी बुझती लौ की तरह अपनी तमाम ताकत का एहसास करवा रही है..तो समझ लो वसंत आ रहा है. वैसे एक बात तो है.. सर्दी-गर्मी-वर्षा..ये ऋतुएं हमारा तन समझता है... पर वसंत की अनुभूति हमारे मन तक होती है.

आज वसंत पंचमी के दिन हमारे उत्तर भारतीय भाई तो पूरे पीले-केसरिया वस्त्र पहने अलग  ही आभा दे रहे होंगे. वीणा- सितार में राग बसंत गूंज रही होंगी.. सितार की बात आई तो बताते चले..हमारे बंगाली भाई आज माँ सरस्वती की पूजा करते हैं. माँ सरस्वती की कृपा हमें कुछ करने का जज्बा जगाती है. पर आज ज्यादा धार्मिक बातें करने का मन नहीं है सो माँ सरस्वती को यहीं प्रणाम...
  दिल दिमाग फुर्सत पाना चाहता है. कड़ाके की ठण्ड से थोड़ी निजात मिली है. खिड़की से अन्दर आने वाली धूप अब थोड़ी थोड़ी चुभने लगी है. वसंत, तुम्हारे आते ही मौसम कसमसाने लगा है. सर्दी का मन तो नहीं है जाने का..बार बार लौट लौट कर अपने होने का एहसास करवा रही है.. प्रकृति ने चारो तरफ पीला-केसरिया रंग उढेल दिया है.. गुनगुनी सर्दी दिल को कुछ ज्यादा ही बैचेन किये दे रही है. मन कह रहा है कि बस कुछ चमत्कार हो जाये और "वो" मेरे पास हो.. दिल के करीब रहने वाले गीत लबों पर आने को बेताब है. मन अपनी चंचलपना पूरी शिद्दत से दिखा रहा है. मौन हैं..चकित है.. कि इस वसंत का एहसान माने, शुक्रिया अदा करें इसका..कि डांट लगायें.. वसंत का आगमन..बहार को देखकर मन उड़ चला है ..फिर से !

                           घर-घर चर्चा हो रही फूलों में इस बार
                           लेकर वसंत आ रहा खुशियों का त्योहार
बहरहाल मन की इन्ही अनसुलझी परतों के बीच ऋतुराज वसंत महाराज तो आ ही गए है. और ये जब जब आते है तो हमें किसी और ही पुरानी दुनिया में ले जाते है. किताबों का बोझ आज भी उतना ही है. बस जब छोटे थे तो "विद्या" पौधे की पत्ती ज़रूर किताबों में छुपा दिया करते थे. पीली सरसों अब उतनी दिखाई नहीं देती. टेरेस पर लगे पौधे पर ज़रूर गुलाब उग आया है. बड़ा सा... पर उसकी पत्तियों को किताब में सहेजना अब उतना अच्छा नहीं लगता. हवा की हलकी खनक आज भी महसूस होती है.
शाम को फतहसागर फिर से जवां लगने लगा है. कुल्हड़ की कोफ़ी रंग जमा रही है. मौसम अलग सा मिज़ाज जता रहा है. मदहोशी फिर से छाने लगी है. वसंत आज हमें फिर से उकसा रहा है, उन पुराने दिनों को फिर से जीने को. आज जब हम अपने आप ही नाराज़ होने लगे है.. उदास ज्यादा और खुश कम होते है..पहले की मदहोशी और आज की मदहोशी के मिज़ाज, सुर और परिभाषाएं, सब बदल गए है. तो आज के दिन कुछ अलग ढंग से वसंत के साथ कुछ अलग हटकर करते है.. पुराने दिनों को ताज़ा करते हुए  अलग ढंग से जीते है. आज खुद से नाराज़ न हो. सबसे कटे हुए, अलगाए हुए उदासीन न बैठे.. बस कुछ ऐसा करें कि ये दिन गुज़र न पाए...आज के खास दिन "मेकेनिकल लाइफ" को अलविदा कह दे.
जिन चीजों को हम कई दिनों से नज़र-अंदाज़ कर रहे थे, उन्हें आज कर ही डालते है. चलिए इसी अंदाज़ में आज ऋतुराज का अभिनन्दन करें... वसंत मनाएं.. दिल को खूब खूब महकने दे..चहकने दे.. आप सभी को इस मनमोहक आनंदित कर देने वाली वसंत ऋतू की बहुत बहुत बधाई...
आपका जीवन हमेशा वासंती रहे...

Friday, January 13, 2012

सोनल मानसिंह के ओडिसी नृत्य ने मन मोहा...


कभी कृष्ण की माखनचोरी... "मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो.. !!" तो कभी मीरा का विरह... "मेरे तो गिरधर गोपाल..!!" कभी राधा-कृष्ण का प्रेम... "सखी हे केशी मथनं उदाराम...!!" तो कभी रविन्द्र संगीत पर बादलों को उलाहना... "ऐसो श्यामल सुन्दरो...!!"
मौका था पचासवें महाराणा कुम्भा संगीत समारोह के स्वर्ण जयंती समारोह में पद्म विभूषण डॉ. सोनल मानसिंह के ओडिसी नृत्य प्रस्तुति का.. कल कार्यक्रम के तीसरे दिन टाउन हाल में सोनल मानसिंह ने पूरे तीन घंटे तक किसी दर्शक को कुर्सी से हिलने तक का मौका नहीं दिया. .


ओडिशा के कृष्ण मंदिरों से निकली नृत्य शैली, जिसे आरम्भ में प्रभु को रिझाने के लिए देवदासियां किया करती थी.. और उन्ही की विभिन्न मुद्राओं पर कोणार्क और पुरी के मंदिरों में शिल्प गढ़ा गया. उसी ओडिसी नृत्य शैली का प्रारंभिक परिचय देते हुए सोनल मानसिंह ने सूरदास के पद  "मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो" से नृत्य सेवा शुरू की.

कृष्ण की विभिन्न नटखट लीलाओं... मटकी तक हाथ न पहुँचने पर लाठी से मटकी भंजन.. यशोदा द्वारा पकडे जाने पर उलाहना... और अंत में "मैया मोरी मैंने ही माखन खायो" कहकर भाग जाना.. सोनल ने पहली ही प्रस्तुति से दर्शकों का मन जीत लिया. तत्पश्चात गीत गोविन्द के अष्ट-पदी में से तीन पद लेकर राधा के प्रेम को वर्णित किया. कार्यक्रम के तीसरे दौर में रविन्द्र नाथ टेगोर के जन्म के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में रविन्द्र संगीत का एक अंश प्रस्तुत किया,जिसमे राधा काले मेघ को उलाहना दे रही है कि वो कब आकर उसे प्रेम के रस में भिगो जायेगा..

अब मौका था मीरा के पद का... मीरा का परिचय देते हुए "मेरे तो गिरधर गोपाल" पर सधी हुयी प्रस्तुति ने दर्शकों को वाह वाह करने पर मजबूर कर दिया. कार्यक्रम के अंत में साथी कलाकारों द्वारा "दशावतार" की प्रस्तुति दी गयी. नौवे अवतार "बुद्ध" के दौरान "बुद्धं शरणम् गच्छामि" के स्वर ने शांति का पाठ पढाया और  जय जगदीश हरे...के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ. सोनल के साथ नृत्य में दीनबंधु, लक्ष्मी, अनीता और सुनीता ने नृत्य सेवा की.









इस से पूर्व महाराणा कुम्भा संगीत परिषद् द्वारा सोनल मानसिंह को "एम्.एन. माथुर पुरस्कार" से सम्मानित किया गया. सोनल मानसिंह ने मेवाड़ की पुण्य भूमि को नमन करते हुए सम्मान ग्रहण किया.





Tuesday, January 10, 2012

शेखर पांचाल हत्याकांड: किसकी नज़र लग गयी उदयपुर को !!!!!


मेरा उदयपुर अपनी खूबसूरती.... अपनी मेहमान नवाजी के लिए पूरे  विश्व में जाना जाता है....पर पिछले कुछ समय से जैसे मेरे शहर की अस्मिता को ही कोई ग्रहण लग गया लगता है....
पेसिफिक कोलेज का का एक छात्र शेखर पांचाल, जो अपनी मिलनसारिता के चलते मारा गया. उसकी इतनी ही गलती थी कि चचेरे भाई हर्षित के दोस्त और अपने से उम्र में बड़े प्रदीपसिंह भाटी (कोटा) को उसने अपना दोस्त समझा. और उसी दोस्त ने फिरौती के लिए शेखर का अपहरण कर लिया.. जब सारा उदयपुर नए साल की अगवानी में व्यस्त था तब न जाने किस स्थिति में शेखर को उदयपुर से कोटा ले जाया जा रहा था... शेखर के पिता फिरौती के रूप में 5 किलो सोना और एक करोड़ रुपये नकद देने को भी तैयार हो गए... पर बदले में क्या मिला...!!! पूरे बारह  दिन बाद  चम्बल नहर में तैरती शेखर की लाश...जिसकी पहचान तक मुश्किल... कद काठी से एक बाप ने अपने बेटे की लाश की तस्दीक की. पिछले दस दिनों से शेखर को तलाशने में हाथ पैर मार रही पुलिस शायद लाश पाकर तसल्ली कर चुकी होगी. पर उस बाप का क्या,जिसका एकलौता बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा. उस परिवार का क्या,जिसने पढने के लिए अपने लाल को उदयपुर भेजा... क्या उदयपुर उनके आंसू पोंछ पायेगा.. क्या पुलिस लौटा पायेगी एक माँ को उसका बेटा... उसका शेखर...!!!  सुनते आये हैं हम कि अगर पुलिस चाहे तो शहर में किसी की चप्पल तक चोरी नहीं हो सकती. पर शायद तब पुलिस भी अपने अंदाज़ में नया साल सेलिब्रेट कर रही होगी....
अख़बारों में आज ये खबर सुर्ख़ियों में है... कागजों का बड़ा हिस्सा काला कर दिया अक्षरों से... पर कहीं ये शब्द ढूंढे से न मिले कि अब आगे क्या ?? क्या फिर किसी परिवार को रोना पड़ेगा.. फिर कोई अपराधी किसी और शहर से आकर उदयपुर में जो मर्ज़ी,वो काम कर जायेगा ?? पिछले कुछ समय की घटनाओं पर नज़र डाले तो पाएंगे कि कभी किसी व्यापारी से सोना लूट लिया जाता है... किसी को लिफ्ट देने के बहाने लूटपाट कर बीच रस्ते सिसकने के लिए फेंक दिया जाता है... किसी बच्चे के सामने उसके माँ-बाप का क़त्ल हो जाता है..खेत में काम कर रही किसी वृद्धा के पैर काट कर चांदी की कड़ियाँ लूट ली जाती है... और हम... हम दंभ भरते हैं कि हमारा शहर सबसे शांतिप्रिय और खुबसूरत शहर है... क्यों किसी की इतनी हिम्मत हो जाती है ... क्यों अब क़ानून का भय नहीं रहा आम लोगों में..
आरोपी प्रदीप ने अपने कर्जे से उबरने के लिए शेखर का बोहरा गणेशजी से अपहरण तो कर लिया..पर शायद बाद में घबरा गया. शेखर उसको पहचानता तो था ही.. अगर फिरौती मिलने के बाद वो शेखर को जाने देता,तब भी उसका पकड़ा जाना पक्का था... तो क्या पहले ही उसने तय कर लिया गया था कि शेखर को मरना होगा ?? और जब इतना प्रदीप सोच सकता है तो फिर उसमे और किसी बड़े अपराधी में क्या अंतर... पुलिस ने तो इतनी तफ्तीश की है कि उसने शेखर को उदयपुर से कोटा ले जाते वक़्त रस्ते में ही मार दिया.. फिर बाद में अपने परिवार वालों और दोस्तों के साथ मिलकर गाड़ी की धुलाई की. हत्या के बाद अपने दोस्त को फोन कर केरोसिन मंगवाया.. शेखर का चेहरा विकृत किया..जलाया... उसके शरीर के टुकड़े किये..एक बोरे में भरे और चम्बल में फेक दिया... और बाद में शेखर के ही फोन से फिरौती के लिए फोन....
शेखर के पिता अपने लख्ते-जिगर का शव देखकर फूट फूट कर रो पड़े... बस बार बार यही कह रहे थे..मेरे बच्चे को मार दिया..मेरे जिगर के टुकड़े की हत्या कर दी. घर पर इसकी माँ को क्या जवाब दूंगा.. उसको पता चलेगा तो बेचारी मर जाएगी.मैंने शेखर को कभी किसी बात की कमी नहीं आने दी.जब जब बाहर से आया, उसने जो मंगाया-लेकर आया. बेटा कहाँ है, एक बार सामने आ जाये..फिर मैं दुनिया से लड़ लूँगा. ..!!
इन आंसुओं को समाज कैसे पोंछ पायेगा.. क्या हमें ये मान लेना चाहिए कि अब हम भी किसी उत्तर-पूर्व के राज्य की तरह हो चुके है... अजीब संयोग है कि शेखर के मरने की खबर तब आई जब महामहिम राष्ट्रपति महोदया , महामहिम राज्यपाल, सूबे के वजीर गहलोत साहब सब शहर में ही थे ...
पर क्या सारी गलती पुलिस पर थोपकर हम आज़ाद हो गए ?? आखिर कब सजग होंगे हम ... आज इन्टरनेट के चलते हम हर संपर्क में आने वाले से दोस्ती कर लेते हैं. ये भी नहीं जानते कि वो कौन है, उसका अतीत क्या है... बस उसके "हाय" का जवाब बड़ी फुर्ती से दे देते है... अगर चार पांच दिनों की बातचीत के बाद वो शख्स अगर आपको कोफी- सिगरेट पीने बुलाये..आप ख़ुशी ख़ुशी अपनी मोटर बाइक उठाकर चल देते है... हर आदमी गलत होता है, ये कहना मेरा मकसद नहीं... पर शायद कई जगह हम खुद को सबसे बड़ा होशियार भी समझने लगते है.. परिवार वाले भी घर खर्च का पैसा देकर इतिश्री कर लेते है. कही न कही गलती हम भी करते है...
शेखर की आत्मा को  श्रृद्धांजलि और आपसे आखिरी सवाल... आखिर कब सजग होंगे हम ...!!!!!

5 बातें, जो उदयपुर को बनाती है सबसे अलग....

1 - राजपूताने के सबसे बड़े महल- उदयपुर के महल "सिटी पेलेस" राजस्थान के सबसे बड़े और सबसे विस्तृत महल माने जाते हैं. कर्नल जेम्स टोड के अनुसार अपने काल में संपूर्ण भारत में इनका कोई सानी नहीं था.
सिटी पेलेस का निर्माण सोलहवीं शताब्दी में शुरू हुआ. सिसोदिया राजवंश की कई पीढ़ियों ने इसके निर्माण में सहयोग दिया. मोर चौक, क्रिस्टल गेलेरी, दरबार हॉल, शम्भू निवास, चन्द्र महल, मर्दाना और जनाना ड्योडी आदि दर्शनीय है. पेलेस में मेवाड़ी शैली की चित्रकारी बहुत खुबसूरत है. पेलेस से पिछोला झील का दृश्य बहुत मनोरम है. जग निवास (लेक पेलेस) और जग मंदिर भी पेलेस का ही एक भाग माना जाता है जो पिछोला झील के मध्य स्थित है. उदयपुर के सिटी पेलेस की तुलना ब्रिटेन के शाही महल "विंडसर पेलेस"  से की जाती है.

2  - 1259 वर्षों से एक ही राजवंश- मेवाड़ विश्व  का संभवतः इकलौता ऐसा प्रान्त है, जहाँ स्थापना से लेकर अभी तक एक ही राजवंश "गुहिल-सिसोदिया" का राज्य रहा. बाप्पा रावल ने 753 ईस्वी में मेवाड़ राज्य की स्थापना की,तब से लेकर अभी श्रीजी अरविन्दसिंह जी मेवाड़ तक एक ही राजवंश ने गद्दीनशीन है. इस दौरान मेवाड़ पर कई आक्रमण हुए. जीत-हार भी चलती रही किन्तु वंश क्रमोन्नत रहा. मेवाड़ में एकलिंग नाथ को राज्य के राजा माना जाता है जबकि राजवंश स्वयं को उनका दीवान कहता है. विश्व में मात्र दो स्थानों,मिस्त्र देश और मेवाड़ में ही किसी देवता को राज्य का राजा माना जाता है.

3 - झीलें, किले और बगीचें - उदयपुर देश ही नहीं अपितु विश्व भर में "सिटी ऑफ़ लेक्स"  के नाम से जाना जाता है. यूँ तो देश में कई अन्य शहर (भोपाल आदि) झीलों का शहर होने का दावा करते हैं किन्तु वस्तुस्थिति यही है कि उदयपुर के अलावा देश ही नहीं अपितु विश्व के किसी और शहर में एक साथ इतनी झीलें नहीं... उदयपुर में पिछोला, फतहसागर, बड़ी, स्वरुप सागर, रंग सागर, गोवर्धन सागर, उदयसागर, दूध तलाई आदि झीलें है तो आस पास में राजसमन्द, जयसमंद सहित अन्य कई छोटे बड़े जलाशय है. प्रमुख बात यह कि शहर के लगभग सभी जलाशय आपस में जुड़े हुए है. इस प्रकार की व्यवस्था इसलिए की गयी ताकि इनका पानी व्यर्थ नहीं बह सके साथ ही शहर को बाढ़ के खतरे से भी बचाया जा सके. पिछोला स्वयं रंगसागर, स्वरुप सागर, गोवर्धन सागर और दूध तलाई से जुड़ा है, वहीँ स्वरुपसागर फतहसागर से.. फतह सागर और स्वरुप सागर का अतिरिक्त पानी एक नहर के माध्यम से आहड़ नदी के द्वारा उदयसागर पहुच जाता है. यहाँ से यह पानी गंभीरी बांध होते हुए बाण गंगा नदी और बाद में चम्बल में जाकर मिल जाता है.

               सज्जनगढ़ देश का पहला किला है जहा "वाटर हार्वेस्टिंग" तकनीक का प्रयोग किया गया. ऊँचे पहाड़ पर स्थित इस अठाहरवीं शताब्दी के किले में तब भी और अब भी पानी निचे से नहीं ले जाना पड़ता.

चौदहवीं शताब्दी में बना कुम्भलगढ़ का परकोटा विश्व भर में अपना अलग स्थान रखता है. "द ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना" के बाद कुम्भलगढ़ के परकोटे की चौड़ाई सबसे अधिक  है. पास ही स्थित चित्तोडगढ का किला जहाँ देश का सबसे पुराना किला है साथ ही पद्मिनी और कर्मावती के जोहर का साक्षी भी...
          
  सज्जन निवास बाग (गुलाबबाग) राजस्थान का सबसे विस्तृत उद्यान है. यहाँ का सरस्वती पुस्तकालय आज भी समृद्ध इतिहास समेटे हुए है. आज जहाँ महात्मा गाँधी की प्रतिमा लगी हुई है, वहां पहले विक्टोरिया की मूर्ती थी. मेवाड़ में पंडित जवाहर लाल नेहरु की पहली सभा का साक्षी रहा यह पार्क.
             फव्वारों के बगीचे के रूप में विख्यात "सहेलियों की बाड़ी" में आज भले ही पानी की कमी के चलते फव्वारे बिजली से चलते हो, किन्तु  बहुत लम्बे समय तक ये फव्वारे फतह सागर के पानी से "ग्रेविटी" से चलते थे.

4 - सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ का जन्म स्थल- आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती महाराणा सज्जन सिंह (1874 - 1884 )के कार्यकाल के दौरान उदयपुर पधारे. तब आर्य समाज की स्थापना हो चुकी थी और महर्षि समाज को एक ऐसा ग्रन्थ देना चाहते थे जो उनके बाद भी राष्ट्र को दशा और दिशा देता रहे. तब महाराणा सज्जनसिंह ने सज्जननिवास बाग़ स्थित "नवलखा महल" में महर्षि को आवास एवं अध्ययन हेतु जगह उपलब्ध करवाई. कालांतर में यही बैठकर महर्षि ने कालजयी ग्रन्थ "सत्यार्थ प्रकाश" की रचना की. आज भी प्रतिवर्ष यहाँ सत्यार्थ प्रकाश महोत्सव का आयोजन होता है. आर्य समाजियों के लिए ये महल किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं. नवलखा महल में संगीतमय फव्वाल्रे लगे हुए है जो वेदों की ऋचाओं पर नृत्य करते है. एक आर्ट गेलेरी में महर्षि का जीवन दर्शन संजो कर रखा गया है.

5 - कला का संगम- गणगौर घाट स्थित बाघोर की हवेली में "पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र" का मुख्यालय है. यह केंद्र सम्बन्धी राज्यों (राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, दादर-नगर हवेली, दमन और दीव) की कलाओं का प्रमुख संग्रहालय चलाता है. हवाला गाँव स्थित शिल्पग्राम में सभी राज्यों की सांस्कृतिक धरोहर संजो कर रखी है. दिसंबर में हस्तशिल्प और सांस्कृतिक मेला भी आयोजित किया जाता है.
            लोक कला मंडल के माध्यम से दक्षिणी राजस्थान की पुरानी कला शैलियों को संजोने का प्रयास किया गया है. कठपुतली कला सरंक्षण में लोक कला मंडल का अहम् योगदान है. राजस्थान के प्राचीन नृत्य शैलियों जैसे गवरी, घूमर, गैर, नेजा, तेराताल, भवाई आदि को सरंक्षण और प्रशिक्षण का कार्य भी लोक कला मंडल कर रहा है. राजस्थान की एकमात्र जीवित मांड गायिका श्रीमती मांगीबाई आर्य भी शहर में ही रहती है.

इसके अलावा भी उदयपुर कई मायनो में अपना एक अलग और विशिष्ठ स्थान रखता है. अगर आप भी कुछ जानते है ऐसा अपने शहर के बारे में, जो अलहदा हो, तो हमारे साथ शेयर कर सकते हैं.

मेवाड़ राजवंश का संक्षिप्त इतिहास

वीर प्रसूता मेवाड की धरती राजपूती प्रतिष्ठा, मर्यादा एवं गौरव का प्रतीक तथा सम्बल है। राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी अंचल का यह राज्य अधिकांशतः अरावली की अभेद्य पर्वत श्रृंखला से परिवेष्टिता है। उपत्यकाओं के परकोटे सामरिक दृष्टिकोण के अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। मेवाड अपनी समृद्धि, परम्परा, अधभूत शौर्य एवं अनूठी कलात्मक अनुदानों के कारण संसार के परिदृश्य में देदीप्यमान है। स्वाधिनता एवं भारतीय संस्कृति की अभिरक्षा के लिए इस वंश ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिये सदा स्मरण किये जाते रहेंगे। मेवाड की वीर प्रसूता धरती में रावल बप्पा, महाराणा सांगा, महाराण प्रताप जैसे सूरवीर, यशस्वी, कर्मठ, राष्ट्रभक्त व स्वतंत्रता प्रेमी विभूतियों ने जन्म लेकर न केवल मेवाड वरन संपूर्ण भारत को गौरान्वित किया है। स्वतन्त्रता की अखल जगाने वाले प्रताप आज भी जन-जन के हृदय में बसे हुये, सभी स्वाभिमानियों के प्रेरक बने हुए है।मेवाड का गुहिल वंश संसार के प्राचीनतम राज वंशों में माना जाता है।मान्यता है कि सिसोदिया क्षत्रिय भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज हैं। श्री गौरीशंकर ओझा की पुस्तक "मेवाड़ राज्य का इतिहास" एक ऐसी पुस्तक है जिसे मेवाड़ के सभी शासकों के नाम एवं क्रम के लिए सर्वाधिक प्रमाणिक माना जाता है.
मेवाड में गहलोत राजवंश - बप्पा ने सन 734 ई० में चित्रांगद गोरी परमार से चित्तौड की सत्ता छीन कर मेवाड में गहलौत वंश के शासक का सूत्रधार बनने का गौरव प्राप्त किया। इनका काल सन 734 ई० से 753 ई० तक था। इसके बाद के शासकों के नाम और समय काल निम्न था -

  1. रावल बप्पा ( काल भोज ) - 734 ई० मेवाड राज्य के गहलौत शासन के सूत्रधार।
  2. रावल खुमान - 753 ई०
  3. मत्तट - 773 - 793 ई०
  4. भर्तभट्त - 793 - 813 ई०
  5. रावल सिंह - 813 - 828 ई०
  6. खुमाण सिंह - 828 - 853 ई०
  7. महायक - 853 - 878 ई०
  8. खुमाण तृतीय - 878 - 903 ई०
  9. भर्तभट्ट द्वितीय - 903 - 951 ई०
  10. अल्लट - 951 - 971 ई०
  11. नरवाहन - 971 - 973 ई०
  12. शालिवाहन - 973 - 977 ई०
  13. शक्ति कुमार - 977 - 993 ई०
  14. अम्बा प्रसाद - 993 - 1007 ई०
  15. शुची वरमा - 1007- 1021 ई०
  16. नर वर्मा - 1021 - 1035 ई०
  17. कीर्ति वर्मा - 1035 - 1051 ई०
  18. योगराज - 1051 - 1068 ई०
  19. वैरठ - 1068 - 1088 ई०
  20. हंस पाल - 1088 - 1103 ई०
  21. वैरी सिंह - 1103 - 1107 ई०
  22. विजय सिंह - 1107 - 1127 ई०
  23. अरि सिंह - 1127 - 1138 ई०
  24. चौड सिंह - 1138 - 1148 ई०
  25. विक्रम सिंह - 1148 - 1158 ई०
  26. रण सिंह ( कर्ण सिंह ) - 1158 - 1168 ई०
  27. क्षेम सिंह - 1168 - 1172 ई०
  28. सामंत सिंह - 1172 - 1179 ई०
(क्षेम सिंह के दो पुत्र सामंत और कुमार सिंह। ज्येष्ठ पुत्र सामंत मेवाड की गद्दी पर सात वर्ष रहे क्योंकि जालौर के कीतू चौहान मेवाड पर अधिकार कर लिया। सामंत सिंह अहाड की पहाडियों पर चले गये। इन्होने बडौदे पर आक्रमण कर वहां का राज्य हस्तगत कर लिया। लेकिन इसी समय इनके भाई कुमार सिंह पुनः मेवाड पर अधिकार कर लिया। )

  1. कुमार सिंह - 1179 - 1191 ई०
  2. मंथन सिंह - 1191 - 1211 ई०
  3. पद्म सिंह - 1211 - 1213 ई०
  4. जैत्र सिंह - 1213 - 1261 ई०
  5. तेज सिंह -1261 - 1273 ई०
  6. समर सिंह - 1273 - 1301 ई०
(समर सिंह का एक पुत्र रतन सिंह मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी हुआ और दूसरा पुत्र कुम्भकरण नेपाल चला गया। नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं। )

35. रतन सिंह ( 1301-1303 ई० ) - इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा - बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा।
36. अजय सिंह ( 1303 - 1326 ई० ) - हमीर राज्य के उत्तराधिकारी थे किन्तु अवयस्क थे। इसलिए अजय सिंह गद्दी पर बैठे।
37. महाराणा हमीर सिंह ( 1326 - 1364 ई० ) - हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को तुगलक से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारण की । इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं।
38. महाराणा क्षेत्र सिंह ( 1364 - 1382 ई० )
39. महाराणा लाखासिंह ( 1382 - 11421 ई० ) - योग्य शासक तथा राज्य के विस्तार करने में अहम योगदान। इनके पक्ष में ज्येष्ठ पुत्र चुडा ने विवाह न करने की भीष्म प्रतिज्ञा की और पिता से हुई संतान मोकल को राज्य का उत्तराधिकारी मानकर जीवन भर उसकी रक्षा की।
40. महाराणा मोकल ( 1421 - 1433 ई० )

 
41. महाराणा कुम्भा ( 1433 - 1469 ई० ) - इन्होने न केवल अपने राज्य का विस्तार किया बल्कि योग्य प्रशासक, सहिष्णु, किलों और मन्दिरों के निर्माण के रुप में ही जाने जाते हैं। कुम्भलगढ़ इन्ही की देन है. इनके पुत्र उदा ने इनकी हत्या करके मेवाड के गद्दी पर अधिकार जमा लिया।

42. महाराणा उदा ( उदय सिंह ) ( 1468 - 1473 ई० ) - महाराणा कुम्भा के द्वितीय पुत्र रायमल, जो ईडर में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे, आक्रमण करके उदय सिंह को पराजित कर सिंहासन की प्रतिष्ठा बचा ली। अन्यथा उदा पांच वर्षों तक मेवाड का विनाश करता रहा।
43. महाराणा रायमल ( 1473 - 1509 ई० ) - सबसे पहले महाराणा रायमल के मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन को पराजित किया और पानगढ, चित्तौड्गढ और कुम्भलगढ किलों पर पुनः अधिकार कर लिया पूरे मेवाड को पुनर्स्थापित कर लिया। इसे इतना शक्तिशाली बना दिया कि कुछ समय के लिये बाह्य आक्रमण के लिये सुरक्षित हो गया। लेकिन इनके पुत्र संग्राम सिंह, पृथ्वीराज और जयमल में उत्तराधिकारी हेतु कलह हुआ और अंततः दो पुत्र मारे गये। अन्त में संग्राम सिंह गद्दी पर गये। 


44. महाराणा सांगा ( संग्राम सिंह ) ( 1509 - 1527 ई० ) - महाराणा सांगा उन मेवाडी महाराणाओं में एक था जिसका नाम मेवाड के ही वही, भारत के इतिहास में गौरव के साथ लिया जाता है। महाराणा सांगा एक साम्राज्यवादी व महत्वाकांक्षी शासक थे, जो संपूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहते थे। इनके समय में मेवाड की सीमा का दूर - दूर तक विस्तार हुआ। महाराणा हिन्दु रक्षक, भारतीय संस्कृति के रखवाले, अद्वितीय योद्धा, कर्मठ, राजनीतीज्ञ, कुश्ल शासक, शरणागत रक्षक, मातृभूमि के प्रति समर्पित, शूरवीर, दूरदर्शी थे। इनका इतिहास स्वर्णिम है। जिसके कारण आज मेवाड के उच्चतम शिरोमणि शासकों में इन्हे जाना जाता है।
45. महाराणा रतन सिंह ( 1528 - 1531 ई० )
46. महाराणा विक्रमादित्य ( 1531 - 1534ई० ) - यह अयोग्य सिद्ध हुआ और गुजरात के बहादुर शाह ने दो बार आक्रमण कर मेवाड को नुकसान पहुंचाया इस दौरान 1300 महारानियों के साथ कर्मावती सती हो गई। विक्रमादित्य की हत्या दासीपुत्र बनवीर ने करके 1534 - 1537 तक मेवाड पर शासन किया। लेकिन इसे मान्यता नहीं मिली। इसी समय सिसोदिया वंश के उदय सिंह को पन्नाधाय ने अपने पुत्र की जान देकर भी बचा लिया और मेवाड के इतिहास में प्रसिद्ध हो गई।
47. महाराणा उदय सिंह ( 1537 - 1572 ई० ) - मेवाड़ की राजधानी चित्तोड़गढ़ से उदयपुर लेकर आये. गिर्वा की पहाड़ियों के बीच उदयपुर शहर इन्ही की देन है. इन्होने अपने जीते जी गद्दी ज्येष्ठपुत्र  जगमाल को दे दी, किन्तु उसे सरदारों ने नहीं माना, फलस्वरूप छोटे बेटे प्रताप को गद्दी मिली. 

48. महाराणा प्रताप ( 1572 -1597 ई० ) - इनका जन्म 9 मई 1540 ई० मे हुआ था। राज्य की बागडोर संभालते समय उनके पास न राजधानी थी न राजा का वैभव, बस था तो स्वाभिमान, गौरव, साहस और पुरुषार्थ। उन्होने तय किया कि सोने चांदी की थाली में नहीं खाऐंगे, कोमल शैया पर नही सोयेंगे, अर्थात हर तरह विलासिता का त्याग करेंगें। धीरे - धीरे प्रताप ने अपनी स्थिति सुधारना प्रारम्भ किया। इस दौरान मान सिंह अकबर का संधि प्रस्ताव लेकर आये जिसमें उन्हे प्रताप के द्वारा अपमानित होना पडा।
परिणाम यह हुआ कि 21 जून 1576 ई० को हल्दीघाटी नामक स्थान पर अकबर और प्रताप का भीषण युद्ध हुआ। जिसमें 14 हजार राजपूत मारे गये। परिणाम यह हुआ कि वर्षों प्रताप जंगल की खाक छानते रहे, जहां घास की रोटी खाई और निरन्तर अकबर सैनिको का आक्रमण झेला, लेकिन हार नहीं मानी। ऐसे समय भीलों ने इनकी बहुत सहायता की।अन्त में भामा शाह ने अपने जीवन में अर्जित पूरी सम्पत्ति प्रताप को देदी। जिसकी सहायता से प्रताप चित्तौडगढ को छोडकर अपने सारे किले 1588 ई० में मुगलों से छिन लिया। 15 जनवरी 1597 में चांडव में प्रताप का निधन हो गया।

49. महाराणा अमर सिंह -(1597 - 1620 ई० ) - प्रारम्भ में मुगल सेना के आक्रमण न होने से अमर सिंह ने राज्य में सुव्यवस्था बनाया। जहांगीर के द्वारा करवाये गयें कई आक्रमण विफ़ल हुए। अंत में खुर्रम ने मेवाड पर अधिकार कर लिया। हारकर बाद में इन्होनें अपमानजनक संधि की जो उनके चरित्र पर बहुत बडा दाग है। वे मेवाड के अंतिम स्वतन्त्र शासक है।
50. महाराणा कर्ण सिद्ध ( 1620 - 1628 ई० ) -
इन्होनें मुगल शासकों से संबंध बनाये रखा और आन्तरिक व्यवस्था सुधारने तथा निर्माण पर ध्यान दिया।
51.महाराणा जगत सिंह ( 1628 - 1652 ई० )
52. महाराणा राजसिंह ( 1652 - 1680 ई० ) - यह मेवाड के उत्थान का काल था। इन्होने औरंगजेब से कई बार लोहा लेकर युद्ध में मात दी। इनका शौर्य पराक्रम और स्वाभिमान महाराणा प्रताप जैसे था। इनकों राजस्थान के राजपूतों का एक गठबंधन, राजनितिक एवं सामाजिक स्तर पर बनाने में सफ़लता अर्जित हुई। जिससे मुगल संगठित लोहा लिया जा सके। महाराणा के प्रयास से अंबेर, मारवाड और मेवाड में गठबंधन बन गया। वे मानते हैं कि बिना सामाजिक गठबंधन के राजनीतिक गठबंधन अपूर्ण और अधूरा रहेगा। अतः इन्होने मारवाह और आमेर से खानपान एवं वैवाहिक संबंध जोडने का निर्णय ले लिया। राजसमन्द झील एवं राजनगर इन्होने ही बसाया.
53. महाराणा जय सिंह ( 1680 - 1698 ई० ) - जयसमंद झील का निर्माण करवाया.
54. महाराणा अमर सिंह द्वितीय ( 1698 - 1710 ई० ) - इसके समय मेवाड की प्रतिष्ठा बढी और उन्होनें कृषि पर ध्यान देकर किसानों को सम्पन्न बना दिया।
55. महाराणा संग्राम सिंह ( 1710 - 1734 ई० ) -
महाराणा संग्राम सिंह दृढ और अडिग, न्यायप्रिय, निष्पक्ष, सिद्धांतप्रिय, अनुशासित, आदर्शवादी थे। इन्होने 18 बार युद्ध किया तथा मेवाड राज्य की प्रतिष्ठा और सीमाओं को न केवल सुरक्षित रखा वरन उनमें वृध्दि भी की।
56. 
महाराणा जगत सिंह द्वितीय ( 1734 - 1751 ई० ) - ये एक अदूरदर्शी और विलासी शासक थे। इन्होने जलमहल बनवाया। शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) को अपना "पगड़ी बदल" भाई बनाया और उन्हें अपने यहाँ पनाह दी.
57.
महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय ( 1751 - 1754 ई० ) 58. महाराणा राजसिंह द्वितीय ( 1754 - 1761 ई० ) 59. महाराणा अरिसिंह द्वितीय ( 1761 - 1773 ई० )
60.
महाराणा हमीर सिंह द्वितीय ( 1773 - 1778 ई० ) - इनके कार्यकाल में सिंधिया और होल्कर ने मेवाड राज्य को लूटपाट करके तहस - नहस कर दिया।
61. महाराणा भीमसिंह ( 1778 - 1828 ई० ) -
इनके कार्यकाल में भी मेवाड आपसी गृहकलह से दुर्बल होता चला गया।  13 जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कम्पनी और मेवाड राज्य में समझौता हो गया। अर्थात मेवाड राज्य ईस्ट इंडिया के साथ चला गया।मेवाड के पूर्वजों की पीढी में बप्पारावल, कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे तेजस्वी, वीर पुरुषों का प्रशासन मेवाड राज्य को मिल चुका था। प्रताप के बाद अधिकांश पीढियों में वह क्षमता नहीं थी जिसकी अपेक्षा मेवाड को थी। महाराजा भीमसिंह योग्य व्यक्ति थे\ निर्णय भी अच्छा लेते थे परन्तु उनके क्रियान्वयन पर ध्यान नही देते थे। इनमें व्यवहारिकता का आभाव था।ब्रिटिश एजेन्ट के मार्गदर्शन, निर्देशन एवं सघन पर्यवेक्षण से मेवाड राज्य प्रगति पथ पर अग्रसर होता चला गया।
62.
महाराणा जवान सिंह ( 1828 - 1838 ई० ) - निःसन्तान। सरदार सिंह को गोद लिया ।
63. महाराणा सरदार सिंह ( 1838 - 1842 ई० ) - निःसन्तान। भाई स्वरुप सिंह को गद्दी दी.
64. 
महाराणा स्वरुप सिंह ( 1842 - 1861 ई० ) - इनके समय 1857 की क्रान्ति हुई। इन्होने विद्रोह कुचलने में अंग्रेजों की मदद की।
65. महाराणा शंभू सिंह ( 1861 - 1874 ई० ) - 
1868 में घोर अकाल पडा। अंग्रेजों का हस्तक्षेप बढा। 


66 .
महाराणा सज्जन सिंह ( 1874 - 1884 ई० ) - बागोर के महाराज शक्ति सिंह के कुंवर सज्जन सिंह को महाराणा का उत्तराधिकार मिला।  इन्होनें राज्य की दशा सुधारनें में उल्लेखनीय योगदान दिया।
67. महाराणा फ़तह सिंह ( 1883 - 1930 ई० ) - सज्जन सिंह के निधन पर शिवरति शाखा के गजसिंह के अनुज एवं दत्तक पुत्र फ़तेहसिंह को महाराणा बनाया गया। फ़तहसिंह कुटनीतिज्ञ, साहसी स्वाभिमानी और दूरदर्शी थे। संत प्रवृति के व्यक्तित्व थे. इनके कार्यकाल में ही किंग जार्ज पंचम ने दिल्ली को देश की राजधानी घोषित करके दिल्ली दरबार लगाया. महाराणा दरबार में नहीं गए . 
68 . महाराणा भूपाल सिंह (1930 - 1955 ई० ) -
इनके समय  में भारत को स्वतन्त्रता मिली और भारत या पाक मिलने की स्वतंत्रता। भोपाल के नवाब और जोधपुर के महाराज हनुवंत सिंह पाक में मिलना चाहते थे और मेवाड को भी उसमें मिलाना चाहते थे। इस पर उन्होनें कहा कि मेवाड भारत के साथ था और अब भी वहीं रहेगा। यह कह कर वे इतिहास में अमर हो गये। स्वतंत्र भारत के वृहद राजस्थान संघ के भूपाल सिंह प्रमुख बनाये गये। 


69 . महाराणा भगवत सिंह ( 1955 - 1984 ई० )
70 . श्रीजी अरविन्दसिंह एवं महाराणा महेन्द्र सिंह (1984 ई० से निरंतर..)


इस तरह 573 ई० में जिस गुहिल वंश की स्थापना हुई बाद में वही सिसोदिया वंश के नाम से जाना गया । जिसमें कई प्रतापी राजा हुए, जिन्होने इस वंश की मानमर्यादा, इज्जत और सम्मान को न केवल बढाया बल्कि इतिहास के गौरवशाली अध्याय में अपना नाम जोडा । यह वंश कई उतार-चढाव और स्वर्णिम अध्याय रचते हुए आज भी अपने गौरव और श्रेष्ठ परम्परा के लिये जाना पहचाना जाता है। धन्य है वह मेवाड और धन्य सिसोदिया वंश जिसमें ऐसे ऐसे अद्वीतिय देशभक्त दिये।

(साभार- मेवाड़ राजवंश का इतिहास- गौरीशंकर ओझा )

Friday, January 06, 2012

बस का सफ़र इतना भी बुरा नहीं... (Top Bus Services From Udaipur)

 हमें उदयपुर से किसी और प्रमुख शहर में जाना है... विभिन्न ट्रेवल कम्पनियों की कई सर्विस उपलब्ध है. किसे चुने..किसे न चुने... ??
गोवा  ट्रिप जाना चाहते हैं... रेल या हवाई जहाज़ में टिकट उपलब्ध नहीं है...क्या करें...??
रोडवेज की सुविधाएं है तो ठीक..पर जाना चाहिए या नहीं...??
ऐसी दिक्कतें कई बार हम महसूस करते है. हमारी टीम ने उदयपुर तथा नजदीकी शहरों से connect कई बस सुविधाओं का अध्ययन किया.बस ओपरेटर द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं, आराम, दुरी के अनुसार लगने वाले समय आदि बातों का ध्यान रखते हुए एक रेंकिंग तैयार की.
उदयपुर से चलने वाली लगभग 32 ट्रवेल कम्पनियों की सभी बस सुविधाओं को अच्छे से अध्ययन करने के बाद तथा उदयपुर पहुचने वाले तथा यहाँ से जाने वाले यात्रियों से सर्वे के बाद एक  सूची तैयार की गयी . राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल,गुजरात,  यू.पी. आदि राज्यों की सरकारी बस सुविधाओं को भी शामिल किया गया.
सर्वे को और अधिक विस्तार देते हुए दक्षिण की ओर अहमदाबाद और  उत्तर की ओर जयपुर से चलने वाली प्रमुख बस सुविधाओं को भी जोड़ा गया. आश्चर्य की बात कि जयपुर से चलने वाली विभिन्न बस सुविधाओं में रोडवेज की वोल्वो बस सुविधाओं ने किराया अधिक होने पर भी बाज़ी मारी.

सो अगली बार यदि आपको बंगलुरु, गोवा, पुना जाना हो.... मुंबई या दिल्ली में कोई जरुरी मीटिंग अटेंड करनी हो  या वैष्णोदेवी के दर्शन करने की अभिलाषा हो ..... मनाली या शिमला में हनीमून मनाना हो... या फिर नेपाल तक की यात्रा करनी हो  और रेल में रिजर्वेशन नहीं मिल रहा हैं तो घबराएं नहीं... बहुत आरामदायक बसें आपका इंतज़ार कर रही हैं....

From Udaipur-

No.
Destination (from Udpr)
Via
Travel Company
facilities
Dept. time
Travelling time* Approx
1
Pune
Vadodara-Mumbai
Shriji Hyundai Travels

AC
Sleeper
Video
3pm
16 Hrs.
2
Mumbai
Vadodara
Neeta Volvo/ RSRTC Volvo

AC
Semi-
sleeper
3.00pm/
6.30pm
12 Hrs
3
Delhi
Bhilwara-Gurgaon
Rishabh


AC- 
Sleeper Video
7.00pm
12
4
Jaipur
Bhilwara
Rishabh/
Paras


AC
 Sleeper
10.00pm
8hrs
5
Agra
Bharatpur
Kalpana



Sleeper
5pm
13 hrs.
6
Haridwar
Delhi- merrut-Rourkie


Shreenath
Sleeper
11am
20 hrs
7
Surat  

Vadodara



Paawan
AC
 Sleeper
4pm
9 hrs
8
Junagarh
Ahmedabad


Shreenath
Sleeper
5pm
13 hrs
9
Sri Ganganagar
Churu- Hanumangarh

Shreenath- Milan
AC
 Sleeper
5PM
15 Hrs
10
Jodhpur
Pali



Jakhar
Sleeper
10pm
8 hrs
11
Jaisalmer
Jodhpur- pokran


RSRTC
Seating
10pm
13 hrs
12
Bikaner
Nagore


Shreenath
AC
Sleeper
5pm
12 hrs
13
Bhopal
Indore


RSRTC
Seating
4pm
14 hrs
14
Kota
Bundi


Paras
Sleeper
10.30pm
6.30hrs
15
Mt. Abu
Deola- Aburoad

PARAS
2x2
10.30am
6 hrs
16
Rajkot
Ahmedabad

Shreenath
AC
Sleeper
10pm
9hrs
17
Dwarika
Rajkot


GSRTC
 Seating
7.00 am

18
Ahmedabad
Himmat nagar
Neeta/ Rishabh
AC
Sleeper/
S.
Sleeper
5.15pm
4 hrs
19
Jamnagar
Rajkot


Shreenath
AC
Sleeper

10pm
11 hrs
20
Nadiad
Ahmedabad

Shreenath
Sleeper


9pm
6 hrs
21
Ajmer
Bhim


RSRTC- Volvo
AC Semi-
sleeper

10pm
6 hrs


Connectivity From Ahmedabad
1
Banglore

pune
VRL Travels
Volvo
Video

4.30pm
24hrs
2
Goa
mumbai
Paulo Travels
Volvo,
Video

2.30pm
20 hrs
3
Shirdi

nashik
Raj Express
AC,
sleeper

7pm
12 hrs
4
Belgaum
Panvel
VRL Travels
Volvo,
Video

2pm
18 hrs
5
Bhuj- kutch
jamnagar,
Gandhidham
Shahjanand
AC Sleeper

11PM
8 hrs
6
Diu
Somnath/Verwal
Paulo Travels
Sleeper


10pm
9 hrs
7
Dwarka
Rajkot
Paawan Travels
AC Sleeper

11pm
8 hrs
8
Hubli (KR)
Pune
VRL Travels
Volvo


2pm
--
9
Kolhapur
Mumbai
VRL/ Neeta Volvo
Volvo


2.30pm
16 hrs

Connectivity From Jaipur
1
Indo-Nepal boarder (Saunoli)
Lucknow, gorakhpur
UPRTC
Volvo
5pm
18 hrs
2
Manali
Chandigarh
RSRTC
Volvo


8 PM
12hrs
3
Simla
Chandigarh
RSRTC
Volvo


9.30pm
12 hrs
4
Nainital
Haldwani
Jaygurudev
AC
Sleeper
video

10pm
12hrs
5
Haridwar
Delhi
RSRTC
Volvo


10.30
9hrs
6
Chandigarh
Delhi
HPRTC, RSRTC
Volvo


9.30pm
8 hrs
7
Dehradoon
Haldwani
UKRTC
Volvo


10.15pm
9 hrs
8
Lucknow
Kanpur
Param
AC
Sleeper
Video

5pm
8 hrs
9
Katra (Vaishnodevi)
Jammu, Jhalandhar
JKRTC
 Volvo
video


6AM
189hrs

यहाँ  स्पष्ट किया जाता  है कि दी गयी जानकारी मात्र आपकी सुविधा के लिए है. कहीं भी जाने से पूर्व एक बार सम्बंधित ओपरेटर से सम्पर्क ज़रूर कर लें. तथा एडवांस में अपनी सीट रिजर्व करवा लें.