Saturday, January 28, 2012

लो बसंत आ ही गया. ..


दुनिया भर की टेंशन, फेसबुक-ट्विटर पर खुद को खोजते, इतनी सारी व्यस्तताओं और उलझनों के बीच हमारे मन का कोई हिस्सा अपने "होने" के एहसास को बचाने की भरसक कोशिश करता है और हमें बार बार ये एहसास कराता है कि हमारे अन्दर कुछ "अनूठा" अभी भी जिंदा है...मरा नहीं है.. हम अभी भी इतने "मेकेनिकल" नहीं हुए है, जितना हम अपने आप को मान लेते है..

और इन्ही तमाम उलझनों और टेंशनो के बीच हमारे मन ने आज खेतो में उगी पीली फसल और उदयपुर की सड़कों पर आँखों में घुस रहे छोटे छोटे कीड़े "मोयला" (जिनसे सब डरते है) ने हमें जाता ही दिया है कि लो ऋतुराज बसंत आ ही गया. यूँ भी देखा जाये तो ये ऋतुएं किसी कलेंडर की मोहताज तो होती नहीं... हमारा मन ही इन्हें समझ जाता है... सर्दी किसी बुझती लौ की तरह अपनी तमाम ताकत का एहसास करवा रही है..तो समझ लो वसंत आ रहा है. वैसे एक बात तो है.. सर्दी-गर्मी-वर्षा..ये ऋतुएं हमारा तन समझता है... पर वसंत की अनुभूति हमारे मन तक होती है.

आज वसंत पंचमी के दिन हमारे उत्तर भारतीय भाई तो पूरे पीले-केसरिया वस्त्र पहने अलग  ही आभा दे रहे होंगे. वीणा- सितार में राग बसंत गूंज रही होंगी.. सितार की बात आई तो बताते चले..हमारे बंगाली भाई आज माँ सरस्वती की पूजा करते हैं. माँ सरस्वती की कृपा हमें कुछ करने का जज्बा जगाती है. पर आज ज्यादा धार्मिक बातें करने का मन नहीं है सो माँ सरस्वती को यहीं प्रणाम...
  दिल दिमाग फुर्सत पाना चाहता है. कड़ाके की ठण्ड से थोड़ी निजात मिली है. खिड़की से अन्दर आने वाली धूप अब थोड़ी थोड़ी चुभने लगी है. वसंत, तुम्हारे आते ही मौसम कसमसाने लगा है. सर्दी का मन तो नहीं है जाने का..बार बार लौट लौट कर अपने होने का एहसास करवा रही है.. प्रकृति ने चारो तरफ पीला-केसरिया रंग उढेल दिया है.. गुनगुनी सर्दी दिल को कुछ ज्यादा ही बैचेन किये दे रही है. मन कह रहा है कि बस कुछ चमत्कार हो जाये और "वो" मेरे पास हो.. दिल के करीब रहने वाले गीत लबों पर आने को बेताब है. मन अपनी चंचलपना पूरी शिद्दत से दिखा रहा है. मौन हैं..चकित है.. कि इस वसंत का एहसान माने, शुक्रिया अदा करें इसका..कि डांट लगायें.. वसंत का आगमन..बहार को देखकर मन उड़ चला है ..फिर से !

                           घर-घर चर्चा हो रही फूलों में इस बार
                           लेकर वसंत आ रहा खुशियों का त्योहार
बहरहाल मन की इन्ही अनसुलझी परतों के बीच ऋतुराज वसंत महाराज तो आ ही गए है. और ये जब जब आते है तो हमें किसी और ही पुरानी दुनिया में ले जाते है. किताबों का बोझ आज भी उतना ही है. बस जब छोटे थे तो "विद्या" पौधे की पत्ती ज़रूर किताबों में छुपा दिया करते थे. पीली सरसों अब उतनी दिखाई नहीं देती. टेरेस पर लगे पौधे पर ज़रूर गुलाब उग आया है. बड़ा सा... पर उसकी पत्तियों को किताब में सहेजना अब उतना अच्छा नहीं लगता. हवा की हलकी खनक आज भी महसूस होती है.
शाम को फतहसागर फिर से जवां लगने लगा है. कुल्हड़ की कोफ़ी रंग जमा रही है. मौसम अलग सा मिज़ाज जता रहा है. मदहोशी फिर से छाने लगी है. वसंत आज हमें फिर से उकसा रहा है, उन पुराने दिनों को फिर से जीने को. आज जब हम अपने आप ही नाराज़ होने लगे है.. उदास ज्यादा और खुश कम होते है..पहले की मदहोशी और आज की मदहोशी के मिज़ाज, सुर और परिभाषाएं, सब बदल गए है. तो आज के दिन कुछ अलग ढंग से वसंत के साथ कुछ अलग हटकर करते है.. पुराने दिनों को ताज़ा करते हुए  अलग ढंग से जीते है. आज खुद से नाराज़ न हो. सबसे कटे हुए, अलगाए हुए उदासीन न बैठे.. बस कुछ ऐसा करें कि ये दिन गुज़र न पाए...आज के खास दिन "मेकेनिकल लाइफ" को अलविदा कह दे.
जिन चीजों को हम कई दिनों से नज़र-अंदाज़ कर रहे थे, उन्हें आज कर ही डालते है. चलिए इसी अंदाज़ में आज ऋतुराज का अभिनन्दन करें... वसंत मनाएं.. दिल को खूब खूब महकने दे..चहकने दे.. आप सभी को इस मनमोहक आनंदित कर देने वाली वसंत ऋतू की बहुत बहुत बधाई...
आपका जीवन हमेशा वासंती रहे...

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