Tuesday, January 10, 2012

5 बातें, जो उदयपुर को बनाती है सबसे अलग....

1 - राजपूताने के सबसे बड़े महल- उदयपुर के महल "सिटी पेलेस" राजस्थान के सबसे बड़े और सबसे विस्तृत महल माने जाते हैं. कर्नल जेम्स टोड के अनुसार अपने काल में संपूर्ण भारत में इनका कोई सानी नहीं था.
सिटी पेलेस का निर्माण सोलहवीं शताब्दी में शुरू हुआ. सिसोदिया राजवंश की कई पीढ़ियों ने इसके निर्माण में सहयोग दिया. मोर चौक, क्रिस्टल गेलेरी, दरबार हॉल, शम्भू निवास, चन्द्र महल, मर्दाना और जनाना ड्योडी आदि दर्शनीय है. पेलेस में मेवाड़ी शैली की चित्रकारी बहुत खुबसूरत है. पेलेस से पिछोला झील का दृश्य बहुत मनोरम है. जग निवास (लेक पेलेस) और जग मंदिर भी पेलेस का ही एक भाग माना जाता है जो पिछोला झील के मध्य स्थित है. उदयपुर के सिटी पेलेस की तुलना ब्रिटेन के शाही महल "विंडसर पेलेस"  से की जाती है.

2  - 1259 वर्षों से एक ही राजवंश- मेवाड़ विश्व  का संभवतः इकलौता ऐसा प्रान्त है, जहाँ स्थापना से लेकर अभी तक एक ही राजवंश "गुहिल-सिसोदिया" का राज्य रहा. बाप्पा रावल ने 753 ईस्वी में मेवाड़ राज्य की स्थापना की,तब से लेकर अभी श्रीजी अरविन्दसिंह जी मेवाड़ तक एक ही राजवंश ने गद्दीनशीन है. इस दौरान मेवाड़ पर कई आक्रमण हुए. जीत-हार भी चलती रही किन्तु वंश क्रमोन्नत रहा. मेवाड़ में एकलिंग नाथ को राज्य के राजा माना जाता है जबकि राजवंश स्वयं को उनका दीवान कहता है. विश्व में मात्र दो स्थानों,मिस्त्र देश और मेवाड़ में ही किसी देवता को राज्य का राजा माना जाता है.

3 - झीलें, किले और बगीचें - उदयपुर देश ही नहीं अपितु विश्व भर में "सिटी ऑफ़ लेक्स"  के नाम से जाना जाता है. यूँ तो देश में कई अन्य शहर (भोपाल आदि) झीलों का शहर होने का दावा करते हैं किन्तु वस्तुस्थिति यही है कि उदयपुर के अलावा देश ही नहीं अपितु विश्व के किसी और शहर में एक साथ इतनी झीलें नहीं... उदयपुर में पिछोला, फतहसागर, बड़ी, स्वरुप सागर, रंग सागर, गोवर्धन सागर, उदयसागर, दूध तलाई आदि झीलें है तो आस पास में राजसमन्द, जयसमंद सहित अन्य कई छोटे बड़े जलाशय है. प्रमुख बात यह कि शहर के लगभग सभी जलाशय आपस में जुड़े हुए है. इस प्रकार की व्यवस्था इसलिए की गयी ताकि इनका पानी व्यर्थ नहीं बह सके साथ ही शहर को बाढ़ के खतरे से भी बचाया जा सके. पिछोला स्वयं रंगसागर, स्वरुप सागर, गोवर्धन सागर और दूध तलाई से जुड़ा है, वहीँ स्वरुपसागर फतहसागर से.. फतह सागर और स्वरुप सागर का अतिरिक्त पानी एक नहर के माध्यम से आहड़ नदी के द्वारा उदयसागर पहुच जाता है. यहाँ से यह पानी गंभीरी बांध होते हुए बाण गंगा नदी और बाद में चम्बल में जाकर मिल जाता है.

               सज्जनगढ़ देश का पहला किला है जहा "वाटर हार्वेस्टिंग" तकनीक का प्रयोग किया गया. ऊँचे पहाड़ पर स्थित इस अठाहरवीं शताब्दी के किले में तब भी और अब भी पानी निचे से नहीं ले जाना पड़ता.

चौदहवीं शताब्दी में बना कुम्भलगढ़ का परकोटा विश्व भर में अपना अलग स्थान रखता है. "द ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना" के बाद कुम्भलगढ़ के परकोटे की चौड़ाई सबसे अधिक  है. पास ही स्थित चित्तोडगढ का किला जहाँ देश का सबसे पुराना किला है साथ ही पद्मिनी और कर्मावती के जोहर का साक्षी भी...
          
  सज्जन निवास बाग (गुलाबबाग) राजस्थान का सबसे विस्तृत उद्यान है. यहाँ का सरस्वती पुस्तकालय आज भी समृद्ध इतिहास समेटे हुए है. आज जहाँ महात्मा गाँधी की प्रतिमा लगी हुई है, वहां पहले विक्टोरिया की मूर्ती थी. मेवाड़ में पंडित जवाहर लाल नेहरु की पहली सभा का साक्षी रहा यह पार्क.
             फव्वारों के बगीचे के रूप में विख्यात "सहेलियों की बाड़ी" में आज भले ही पानी की कमी के चलते फव्वारे बिजली से चलते हो, किन्तु  बहुत लम्बे समय तक ये फव्वारे फतह सागर के पानी से "ग्रेविटी" से चलते थे.

4 - सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ का जन्म स्थल- आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती महाराणा सज्जन सिंह (1874 - 1884 )के कार्यकाल के दौरान उदयपुर पधारे. तब आर्य समाज की स्थापना हो चुकी थी और महर्षि समाज को एक ऐसा ग्रन्थ देना चाहते थे जो उनके बाद भी राष्ट्र को दशा और दिशा देता रहे. तब महाराणा सज्जनसिंह ने सज्जननिवास बाग़ स्थित "नवलखा महल" में महर्षि को आवास एवं अध्ययन हेतु जगह उपलब्ध करवाई. कालांतर में यही बैठकर महर्षि ने कालजयी ग्रन्थ "सत्यार्थ प्रकाश" की रचना की. आज भी प्रतिवर्ष यहाँ सत्यार्थ प्रकाश महोत्सव का आयोजन होता है. आर्य समाजियों के लिए ये महल किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं. नवलखा महल में संगीतमय फव्वाल्रे लगे हुए है जो वेदों की ऋचाओं पर नृत्य करते है. एक आर्ट गेलेरी में महर्षि का जीवन दर्शन संजो कर रखा गया है.

5 - कला का संगम- गणगौर घाट स्थित बाघोर की हवेली में "पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र" का मुख्यालय है. यह केंद्र सम्बन्धी राज्यों (राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, दादर-नगर हवेली, दमन और दीव) की कलाओं का प्रमुख संग्रहालय चलाता है. हवाला गाँव स्थित शिल्पग्राम में सभी राज्यों की सांस्कृतिक धरोहर संजो कर रखी है. दिसंबर में हस्तशिल्प और सांस्कृतिक मेला भी आयोजित किया जाता है.
            लोक कला मंडल के माध्यम से दक्षिणी राजस्थान की पुरानी कला शैलियों को संजोने का प्रयास किया गया है. कठपुतली कला सरंक्षण में लोक कला मंडल का अहम् योगदान है. राजस्थान के प्राचीन नृत्य शैलियों जैसे गवरी, घूमर, गैर, नेजा, तेराताल, भवाई आदि को सरंक्षण और प्रशिक्षण का कार्य भी लोक कला मंडल कर रहा है. राजस्थान की एकमात्र जीवित मांड गायिका श्रीमती मांगीबाई आर्य भी शहर में ही रहती है.

इसके अलावा भी उदयपुर कई मायनो में अपना एक अलग और विशिष्ठ स्थान रखता है. अगर आप भी कुछ जानते है ऐसा अपने शहर के बारे में, जो अलहदा हो, तो हमारे साथ शेयर कर सकते हैं.

2 comments:

  1. Bahut rochak jaankaaree aur behtareen tasveeren!

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  2. उदयपुर का किला एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, इस जगह को देखने बहुत से पर्यटक आते हैं.

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