Monday, April 11, 2011

मेरे बेटे का स्कूल में पहला दिन..

आज मेरा बेटा ऋषित पहली बार स्कूल गया.पिछले कई दिनों से बहुत उत्साहित था. पिछले पांच सात दिनों से किसी ने ये सिखा दिया था... "अब तो स्कूल जाना पड़ेगा...टीचर की मार खानी पड़ेगी...टिफिन से लंच खाना पड़ेगा...डैडी की बाइक पर बैठ कर जाऊंगा..."  रोज़ सुबह शाम पोएम की तरह रटता फिरता रहा..
कल रात को सोते वक़्त भी मुझे बोलता है..." शुबे जल्दी उता देना, मेले को स्कूल जाना है..." और आज सुबह जल्दी उठ गया... मम्मी (उसकी दादी मेरी मम्मी) मुझे ब्रेकफास्ट दो ना...डैडी को उठाओ न... mumma (उसकी मम्मी) डैडी कहा गए... मुझे ब्रश करवा दो ना... लगभग एक घंटे तक उसका खेल चलता रहा... हमें बहुत हंसी आ रही थी... मम्मी ने उसके लिए पराठा टिफिन में पेक किया.. बेग में एक कॉपी रखी, पेंसिल.. वाटर बोतल में पानी भरा... पहला दिन था सो uniform की ज़रूरत तो थी नहीं.. सो उसको रेडी किया... करीने से बाल सवारें...कोई आम दिन होता तो वो अपने बाल फिर से बिखेर देता...उसे जमे हुए बाल रत्ती भर पसंद नहीं किन्तु.." टीचर की मार खानी पड़ेगी..." से मान गया.. बोतल गले में लटकाई और मेरी बाइक के पास आकर खड़ा हो गया...चलो में रेडी हो गया..."
घडी साढ़े सात बजा रही थी..स्कूल सवा आठ का था... घर से दूरी मुश्किल से 5 मिनिट...पर उसका उत्साह देखते ही बन रहा था... नीता उसे लेकर सामने मंदिर गयी..ठाकुर जी के धोक लगवाई... हनुमानजी के सामने हाथ जुडवाए... 
बैठ गया बाइक पर... मैं नहीं रोऊंगा..आप मत डरना... मैं भी नहीं डरता... मैं टिफिन खा लूँगा...पानी भी पि लूँगा...उसका मुह कुछ ना कुछ बोलता ही जा रहा था.....चुप रहने का तो सवाल ही नहीं...असर पूरा है...वर्ना उसका बाप क्या कम चुप रहता है ???
स्कूल में क्लास में बिठाया..बच्चे आते जा रहे थे.. कुछ रोना शुरू..पर ऋषित को फर्क नहीं पड़ रहा था..हां बस चेहरे से मुस्कान गायब होते देर नहीं लगी...बिलकुल चुप...अब तो आवाज़ भी गायब...बस रोया नहीं...ये बात मुझे ख़ुशी दे रही थी..अन्दर से मैं बहुत भावुक हो रहा था पर बाहर हंस रहा था.. 10 -15 मिनिट तो मैं उसके पास बैठा रहा...बच्चो से उसे हाथ मिलवाता रहा..एक दुसरे से परिचय करवाता रहा...पड़ोस में एक बच्ची रोने लगी तो ऋषित उसे देखकर थोरा सा उदास हुआ.... टीचर का पदार्पण हुआ......सभी परेंट्स से रिक्वेस्ट है कि बाहर चलें जाये, आप टेंशन न लें..यहाँ आपके बेबी कि ठीक से देखभाल होगी. .... जैसे ही मैं उसके पास से उठा ऋषित भी उठ गया...बोतल गले में डाली ..बेग उठाया और बोलता है चलो...स्कूल ख़तम हो गया...मैं बहुत भावुक हो रहा था... मैंने कहा शाम को बड़ी वाली आइस-क्रीम खिलाऊंगा..नहीं चाहिए...जूस पिने चलेंगे...नहीं....फ्रूटी पिएगा या अप्पी-फ़िज़...कुछ नहीं पीना....मुझे mumma के पास ले चलो...स्कुल ख़तम हो गया..मुझे घर जाना है...
मैं बाहर आ गया...मुझे बाहर जाता देखकर वो जोर जोर से रोना शुरू.....मन ही मन सोचा..अगर पलटा तो फिर उसे चुप करवाना भारी हो जायेगा...  टीचर बोलती है आप टेंशन ना ले..थोरी देर में चुप हो जायेगा...बाहर माइक पर बार बार एनाउंस हो रहा था...सभी परेंट्स से रिक्वेस्ट है बाहर आ जाये..यहाँ बच्चो कि अच्छे से ख्याल रखी जाएगी...
मैं बाइक तक आया.. मन नहीं माना..वापस अन्दर गया... दूर से देखा...सभी बच्चे अपनी अपनी सीट पर बैठे बैठे रो रहे थे...पर ऋषित अपनी सीट पर नहीं दिखाई दिया...मुझे टेंशन हुआ...तभी देखता हु...टीचर ने हाथ पकड़ कर रखा है...और वो बाहर की तरफ देखता हुआ जोर जोर से रो रहा है...
तभी एक टीचर पास में आया, और मुझे बोला...आप बाहर चले २-3 दिन में सब रोना धोना बंद...होता है यार...आप क्यों उदास होते हो...
हाँ यार..मैं क्यों उदास हो रहा था...मेरी आँखों में पानी था..एकदम से ध्यान गया...अरे ये कब आ गया... वो पहली बार किसी और के हाथो में था...मेरे परिवार के सबसे छोटे  सदस्य ने  अपनी ज़िन्दगी की राह खोजने की दिशा में पहला कदम बढाया... पूरे तीन घंटे वो अपने परिवार से दूर रहने वाला है... 
मैं अपने आंसू रोकने कि कोशिश करता हु..... सुलानिया (मेरा जयपुर वासी मित्र) का फ़ोन आता  है... बोलता है, अभी ऋषित रो रहा है...थोड़े दिन रुक,फिर प्रिंसिपल रोयेगा..."
मैं चुप हो जाता हु...

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