Monday, November 30, 2009

मुझे माफ़ करना माँ.... !!!


सागर थका हारा रूम पर लौटाआज अचानक मकान मालिक के दबाव के चलते उसे पुरे घंटे की क्लास अटेंड करनी पड़ी और क्लास के चलते वो मयूर की लंच पार्टी में भी नही जा paya थाख़ुद से ही खफा हो,ऐसा चेहरा बनाया हुआ......कि.......कोटा में pre-IIT-G की कोचिंग के लिए आये - माह बीत चुके थे...पर सागर कभी कभी होली-दिवाली ही क्लास अटेंड किया करता था ....
उसे आभास हो चला था कि उसका सलेक्शन नही होने वाला....हो भी तो कैसे.....आज ये पार्टी,कल वो फ़िल्म...बस यह ही ज़िन्दगी थी उसकी ...कोटा में... ।
घर...परिवार..माँ...याद तभी आया करती, जब बैंक खाते में पैसा नही आता था....खैर...खीजते हुए उसने दरवाजा खोला...निचे चिट्ठी पढ़ी थी, शायद माँ की थी..हां माँ की ही थी.......
आखिरी बार जब घर गया था,तो पढ़ाई के सिलसिले में माँ ने खूब "भजन" सुनाये थे...तब से......खैर.....

"प्यारे बिट्टू,
बहुत सारा प्यार !!
कामना है सकुशल होंगे.जब से तुम गए,तुम्हारी याद बहुत परेशां करती रही.अब तक समझ में नही रहा कि क्या करू??तुम्हारी चिंता सताती है. जानती hu कि तुम अब बड़े हो गए हो,मुझे तुम्हारी फिक्र नही करनी चाहिए...लेकिन,एक दम से ये भूल नही पाती कि अब तुम्हारी ज़िन्दगी में मेरे अलावा भी बहुत कुछ और है...मन अजीब सी छात्पताहत से भर उठता है.बैचेनी दिल को कसकर मुट्ठी में भींच लेती है.लेकिन होंठ भीड़ में फ़िर मुस्कुराने लगते है.मन ishwar से यही प्रार्थना करता है कि तुम हमेशा खुश रहो..तुम्हारे सपने पूरे हो
अबकी बार जा तुम आए,तुमसे ढेर साडी बातें करना चाहती थी मैं,लेकिन हमारे तुम्हारे बिच ढेर सारी कदवहतो ने जन्मा ले लियातुम कुछ सुनाने को तैयार नही थे और मेरा शायद कहने का तरीका ही ग़लत था.ग़लत मैं कई जगह पर हुमेरी सोच ग़लत है,मेरी अपेक्षाएं ग़लत है, मेरी चाहत ग़लत है- सब कुछ तो ग़लत है फ़िर सही कुछ हो भी तो कैसे !!!!
मैं बचपन में सोचा करती थी कि आदमी का भाग्य कुछ नही होता..आदमी चाहे तो अपनी म्हणत से अपने हाथ कि लकीरों को बदल सकता है.लेकिन मैं कुछ भी नही बदल सकीना अपनी किस्मत और ही इन हाथ कि लकीरों में कैद अपना भविष्य और वर्तमानतुमसे कुछ भी तो नही छिपा हैसब कुछ खुली किताब कि तरह तुम्हारे सामने हैबुजुर्गो कि मौत के बाद सोचा चलो तुम्हारे पापा तो हैपर जब तुम साल के थे तो तुम्हारे पापा, मुझे और तुम्हे भगवन के भरोसे छोड़ किसी और के साथ....... मैंने सोचा, तुम तो होतुम मेरा अपना खून हो,तुमसे काफी अपेक्षाएं थी मुझे...और हैं...
खैर,सबसे पहले मैं तुमसे अपने उस दिन के व्यवहार के लिए माफ़ी चाहती हुमुझे तुम पर हाथ नही उठाना चाहिए थामाँ-बच्चे का रिश्ता शायद बदती उमर के साथ बदल जाना चाहिए....पर माँ के लिए तो साल के बिट्टू और १८ साल के सागर में कोई अन्तर नही होता ... ।शायद अब मेरा तुम पर हक ख़तम सा हो चला है, विश्वास है तुम मुझे माफ़ करोगेहाँ ! इत अवश्य चाहती हु कि हमारे बिच स्नेह बना रहे
बिट्टू, मैंने जीवन में बहुत संगर्ष किया हैपुरी ज़िन्दगी मैंने दुसरो की उपेक्षा और तिरस्कार सहे हैसभी ने मेरे लिए कठिनाईयां ही पैदा की .ना jane मेरे bhitar ऐसा क्या था कि , जिसने मेरी संघर्ष क्षमता को जीवीत रखाक्योकि मैं कायर नही थी, इसलिए मर ना सकीऔर फ़िर तुम्हे किसके भरोसे छोडती ? लेकिन आज ज़िन्दगी से थकान लगने लगी हैकोई आकर्षण नही रह गया हैसाँस साँस बोझिल लगने लगी है
हाँ...तो मैं कह रही थी कि नि:संदेह तुम्हारी ज़िन्दगी में मेरी कोई जगह हो, लेकिन इतना अवश्य चाहती हु कि तुम अपने raste से bhatkoमेहनत करना sikho और manzil pa लोवरना तुम ज़िन्दगी में बहुत piche रह जाओगेयदि समय का mulya नही पहचानोगे तो कल समय तुम्हारा मूल्य gavan देगा
मेरी बात को तुम ये समझना कि माँ ने कहा हैये मेरी ज़िन्दगी का तजुर्बा हैमेरा क्या है...मुझे तो अब कुछ पाना भी नही... । तुम ख़ुद समझदार हो
तुम्हारा बचपन अच्छा गुज़रापहले माँ-पापा का और फ़िर सिर्फ़ माँ का ही सही, पर तुम्हे ढेर सारा स्नेह मिलामाँ ने तुम्हारे पीछे अपने सारे दुखो को भुला दियाअक्सर छोटे में वो तुम्हे खिलाती थी तो गाया करती थी
" अंगुली पकड़ कर तेरी, मैं तुझको चला सिखाऊ
फ़िर हाथ पकड़ना मेरा, जब बूढी हो जाऊ।"

तुम्हारी एक अजीब सी चिंता मुझे हर पल घेरे रहती है. पता नही मेरे भाग्य में और क्या लिखा है ? तुम्हारे भविष्य कि चिंता मुझे हर दम परेशान करती है, लेकिन मैं सिर्फ़ चटपटा ही पाती हुजीवन में कभी भी, कही भी, किसी भी viprit परिस्थिति में हमेशा झूझने वाली मैं...यहीं आकर टूट जाती हुअब तो सब कुछ इश्वर के हाथ छोड़ दिया हैशायद इसके अलवा मेरे पास कोई चारा भी नही रहा
इतनी साड़ी नसीहतें पढ़ कर तुम्हे ज़रूर गुस्सा आएगा,लेकन ये तुम्हारी माँ नही लिख रही...भरती शर्मा लिख रही हैमेरे और तुम्हारे बिच का रिश्ता अगर सहज रह पाए, तो मुझे तुम्हारी माँ कहलवाने का कोई हक नही ... । फ़िर भी मैं तुम्हारे हल पल, हर क्षण साथ हूँतुम्हारे अच्छे में भी और तुम्हारे बुरे मैं भी
मेरे रहते तुम्हे कभी अभाव या परेशानी नही देखनी पड़ेगीये एक वादा है मेरातुम हमेशा मुझे अपने आस-पास पाओगेहमेशा खुश रहोमैं चाहती हु कि मैं अपना आत्मा सम्मान बनाये रख पौ, तुम मुझे tna जीवन jine layak doge
मेरी shubh kamnayein,प्यार dular, आशीर्वाद सभी पर आख़िर तुम्हारा ही तो हक है...

भरती शर्मा।"


sanghya shunya हो सागर उस चिट्ठी को देखे जा रहा था, जो ख़तम हो कर भी शायद shesh थी...शब्दों के ज्वर बार bar उसके मन को उद्वेलित कर रहे थेतभी बहार दरवाजे पर दस्तक हुई, bahar कुछ दोस्त खड़े थे...."सागर सिनेप्लेक्स में नई फ़िल्म लगी है.......रिश्ते........चलेगा देखने....."
सागर कुछ देर सोचने लगाफ़िर घड़ी ki और देखा... bajne में aadha घंटा थाबस वो जल्दी जल्दी कपड़े badlne लगा....
darvaje पर ताला lagate हुए budbudaya..."मुझे माफ़ करना माँ॥!!!!"
चिट्ठी का jvaar ठंडा पड़ चुका था....वो फ़िल्म देखने जा रहा था....रिश्ते....."

2 comments:

  1. BAHUT HI MARMIKATA SE VARNAN KIYA HE AAPNE AAPKI SHELI MUJJHE BAHUT ACHHI LAGI ME AAPKE SATH HUN .... ASHA KARTA HUN AAP ESHE HI LIKHTE RAHENGE.......

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  2. well manu.......
    apne zeevwn ka sach shayad hi koi aur itni gehraayi aur sacchai se bata payega......
    ye sirf ek lekh nhi h....its much more than that..

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