कितने युग बीते आकाश को....
कितने युग बीते धरती को...
कितने युग बीते सूरज को...
कितने युग बीते चन्द्रमा को...
कितने युग बीते मनुष्य को...
कितने युगों से बह रही है नदियाँ...
कितने युगों से हो रही है वर्षा...
कितने युगों से लग रही है भूख...
कितने युगों से लग रही है प्यास....
सर्दी-गर्मी बदली ऋतुएं..
भूकंप-सुनामी-आंधियां-तूफ़ान...
कितने युगों से चल रहा है काल-चक्र
कितने युगों से बह रहा है समय दयान्वान...
कितने युगों इ चल रहा है समय निर्मम...
ये कविता नहीं है...
यह सत्य है
यह हो रहा है युगों से...निरंतर हो रहा है...
जन्म ले रही है मृत्यु
मृत्यु में जी रहा है जीवन...
कहीं मोक्ष में कामना जी रही है...
कहीं विनाश की बिजलियाँ चमक रही है....
चेतावनियाँ देते रहते है आते-जाते मौसम...
सूर्योदय से सूर्यास्त तक घटित हो रहा नित नूतन...
कुछ भी रुका हुआ नहीं...चल रहा सभी कुछ....
हो रहा सब कुछ....
किस सोच में पड़ गए मित्र ?
क्या कष्ट है ?
क्यों हो इतने परेशां ?
ये घुटन कैसी ?
संतोष नहीं है ना ?
क्यों नहीं है ?
सोचो
उत्तर सोचो
यह आते जाते क्षण भंगुर पल
सब कुछ गमन-आगमन में लगा हुआ
तो इस तरह बैठना उचित है क्या ?
किस आशा में बैठे हो?
किसी चमत्कार की आशा में ?
चमत्कार नहीं हुआ तो ??
फिर उठो
कर्म करो
कर्म को धर्म मान कर उठो
मानव सेवा करो
नारायण सेवा करो
हजारो है दुखी पीड़ित मनुष्य
इन्हें अपना लो
कहीं ऐसा न हो
की जो भूखा हो-वही नारायण हो
तेरी परीक्षा लेने आया हो...
क्या इस परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होना है ??
लो अभी निर्णय...करो प्रतिज्ञा कर्म की...
कर्म की.....मानव धर्मं की....
.करो प्रतिज्ञा कर्म की...
ReplyDeleteकर्म की.....मानव धर्मं की.. welcome
manav seva karna sabse badi prabhu seva hai...
ReplyDeletebhaut achi seekhd eti rachna
Bahut sundar likha hai..anek shubhkamnayen!
ReplyDeletebhai... sirf anchor hi thik the...
ReplyDeleteye naya rang kahin hamari bhabhiji ke liye tension ka karan na ban jaye....
pehle nij sewa baa me samaj sewa...