मेरा उदयपुर अपनी खूबसूरती.... अपनी मेहमान नवाजी के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है....पर पिछले कुछ समय से जैसे मेरे शहर की अस्मिता को ही कोई ग्रहण लग गया लगता है.... कोई तीन साल पहले उदयपुर की मुख्य झील फ़तेहसागर में तीन कन्या भ्रूण मिले थे... तो अब एक डॉक्टर की लापरवाही से एक नवजात की साँसे "कट" गयी....और उसके बाद वो डॉक्टर..जो खुद उस जनाना अस्पताल की अधीक्षक भी है...खुद एक माँ भी है....कहती है....ऐसी घटनाएं तो होती रहती है...
उदयपुर के सरकारी पन्नाधाय जनाना अस्पताल में एक सिजेरियन के दौरान डॉक्टर की लापरवाही से ब्लेड से नवजात का एक हाथ कट गया.हाथ काटने के तीसरे दिन नवजात की मौत हो गयी. अस्पताल की अधीक्षक डॉक्टर कमलेश पंजाबी की यूनिट में हुई इस लापरवाही के बाद उनका गैर जिम्मेदाराना कमेन्ट यहाँ चर्चा का विषय बना हुआ है. कलेक्टर आनंद कुमार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जांच के आदेश दे दिए है.इस लापरवाही पर वरिष्ठ डॉक्टरों से कोई जवाब देते नहीं बन रहा है...डॉक्टरों की साँसे फूली हुई है..सभी बड़े डॉक्टर्स ने अपने मोबाईल फोन बंद कर दिए है..."
ये एक शर्मनाक लापरवाही है.....
हद की भी हद हो गयी. बबली (मां) के जिगर के टुकड़े हो गए और डॉक्टर ने अपने हाथ "दास्ताने" में छुपाने के लिए जी-जान लगा दी. संवेदनाओं की बलि होने की वेदना को हर इंसान ने झेला और....शिशु हाथ ही नहीं जान से भी चला ग्गाया. आखिर कहाँ गिरेंगे ये आंसू मिस्कीनी के...इधर खून जिगर का...उधर सितमगर.." एक डॉक्टर की बेशर्मी की वजह से बबली माँ बनकर भी मातृत्व का सुख नहीं पा सकी, एक ज़िंदा लाश बन गयी है .
एक माँ की कोख उजड़ने की कगार पर थी,मगर महिला डॉक्टर अपनी टीम पर लगे दाग को सार्वजनिक तौर पर बड़ी बेशर्मी से धोने में लगी हुई थी.... "ऐसे मामले तो अस्पताल में होते रहते है.." ये बयान डॉक्टर की संवेदन-हीनता को ही नहीं, बौखलाहट को भी बयां करता है. और ये बयान एक खबर के खात्मे के लिए किसी खंज़र से कम नहीं था...महिला डॉक्टर एक माँ होकर भी उस अभागी माँ के दर्द को समझ नहीं पा रही थी...
ज़िन्दगी भर माताओं के बिच रहकर भी ममता का सबक नहीं समझ सकी. एक डॉक्टर के लिय पहली शर्त ये है की वो एक इंसान हो.इस मामले में ऐसा रंच मात्र भी हो, लगता तो नहीं है...गलती कहीं भी और किसी भी से हो सकती है मगर दंभ में चूर होकर गलती को कबूल न करना और निर्लज्जता पूर्वक बचाव के रास्ते अख्तियार करना, एक सुसंकृत डॉक्टर से तो ऐसी अपेक्षा न तो कोई माँ करेगी न ही कोई पिता...
कल तक यह मामला मेडिकल नेग्लिजेंस का हो सकता था मगर जनाना अस्पताल की अधीक्षक द्वारा परिजनों को भ्रम में रखना और बेहतर इलाज के मौलिक अधिकार से वंचित रखना...मामले को हलके से लेना ऐसे कुछ कारन है,जिन्हें देखते हुए इस मामले को क्रिमिनल नेग्लिजेंस में तब्दील किये जाना चाहिए ताकि भविष्य में फिर कोई बबली किसी डॉक्टर की लापरवाही के चलते अपनी औलाद न खोये . आखिर किसे है माँ के ज़ख्मो का एहसास..जिगर में गड गए है जिसके हज़ार नश्तर......**यह आलेख दैनिक भास्कर समाचार पत्र में भी प्रकाशित हो चुका है.**