Thursday, December 22, 2011

श्रीनाथ जी :सप्त दर्शन लाभ

श्रीगोवर्धननाथ पाद युगलं हैयंगवीनप्रियम्‌,
नित्यं श्रीमथुराधिंप सुखकरं श्रीविट्ठलेश मुदा ।
श्रीमद्वारवतीश गोकुलपति श्रीगोकुलेन्दुं विभुम्‌,
श्रीमन्मन्मथ मोहनं नटवरं श्रीबालकृष्णं भजे ॥
आचार्य चरण, प्रभुचरण सहित सप्त आचार्य वर्णन-
श्रीमद्वल्लभविट्ठलौ गिरिधरं गोविंदरायाभिधम्‌,
श्रीमद् बालकृष्ण गोकुलपतिनाथ रघूणां तथा
एवं श्रीयदुनायकं किल घनश्यामं च तद्वंशजान्‌,
कालिन्दीं स्वगुरुं गिरिं गुरुविभूं स्वीयंप्रभुंश्च स्मरेत्‌ ॥

 छप्पन भोग झांकी का दुर्लभ सजीव चित्र (साभार- श्यामा  स्टूडियो )
पुष्टि मार्ग में भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की आराधना की जाती है जिसमें उन्होंने बाएँ हाथ से गोवर्धन पर्वत उठा रखा है और उनका दायाँ हाथ कमर पर है।
श्रीनाथ जी का बायाँ हाथ 1410 में गोवर्धन पर्वत पर प्रकट हुआ। उनका मुख तब प्रकट हुआ जब श्री वल्लभाचार्यजी का जन्म 1479 में हुआ। अर्थात्‌ कमल के समान मुख का प्राकट्य हुआ।
1493
में श्रीवल्लभाचार्य को अर्धरात्रि में भगवान श्रीनाथ जी के दर्शन हुए।साधू पांडे जो गोवर्धन पर्वत की तलहटी में रहते थे उनकी एक गाय थी। एक दिन गाय ने श्रीनाथ जी को दूध चढ़ाया। शाम को दुहने पर दूध न मिला तो दूसरे दिन साधू पांडे गाय के पीछे गया और पर्वत पर श्रीनाथजी के दर्शन पाकर धन्य हो गया। दूसरी सुबह सब लोग पर्वत पर गए तो देखा कि वहाँ दैवीय बालक भाग रहा था। वल्लभाचार्य को उन्होंने आदेश दिया कि मुझे एक स्थल पर विराजित कर नित्य प्रति मेरी सेवा करो। तभी से श्रीनाथ जी की सेवा मानव दिनचर्या के अनुरूप की जाती है। इसलिए इनके मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, आरती, भोग, शयन के दर्शन होते हैं। कालांतर में मुस्लिम आतातियों के निरंतर आक्रमणों और मीरा बाई को दिए वचन के चलते श्रीजी मेवाड़ पधारे और पहले घसियार और बाद में श्रीनाथद्वारा में पधारे. तभी से श्रीनाथद्वारा वैष्णवों का प्रमुख तीर्थ स्थल है.  



(फोटो दर्शन -झांकियां क्रमशः  मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती/शयन )

दर्शनों का समय...
मंगला प्रातः 5 - 5.15AM बजे, श्रृंगार 7 - 7.15AM  बजे, 
ग्वाल 8.30 - 8.40AM , राजभोग 11.40-12.15 PM, 
उत्थापन दर्शन सायं 3.45- 4.00PM बजे, भोग 5- 5.05PM , 
आरती 6.00-6.15 PM  शयन (गुप्त)

Sunday, December 18, 2011

“यहाँ देवी करती है अग्नि-स्नान”

उदयपुर शहर से 60 कि.मी. दूर कुराबड- बम्बोरा मार्ग पर अरावली की विस्तृत पहाड़ियों के बीच स्थित है मेवाड़ का प्रमुख शक्ति-पीठ इडाना माता जी. राजपूत समुदाय, भील आदिवासी समुदाय सहित संपूर्ण मेवाड़ की आराध्य माँ.

स्थानीय लोगों में ऐसा विश्वास है कि लकवा से ग्रसित रोगी यहाँ माँ के दरबार में आकर ठीक होकर जाते हैं. माँ का दरबार बिलकुल खुले एक चौक में स्थित है. ज्ञात हुआ कि यहाँ देवी की प्रतिमा माह में दो से तीन बार स्वतः जागृत अग्नि से स्नान करती है. इस अग्नि स्नान से माँ की सम्पूर्ण चढ़ाई गयी चुनरियाँ, धागे आदि भस्म हो जाते हैं. इसी अग्नि स्नान के कारन यहाँ माँ का मंदिर नहीं बन पाया. माँ की प्रतिमा के पीछे अगणित त्रिशूल लगे हुए है. यहाँ भक्त अपनी मिन्नत पूर्ण होने पर त्रिशूल चढाने आते है. साथ ही संतान की मिन्नत रखने वाले दम्पत्तियों द्वारा पुत्र रत्न प्राप्ति पर यहाँ झुला चढाने की भी परम्परा है. इसके अतिरिक्त लकवा ग्रस्त शरीर के अंग विशेष के ठीक होने पर रोगियों के परिजनों द्वारा  यहाँ चांदी या काष्ठ के अंग बनाकर चढ़ाये जाते हैं.

प्रतिमा स्थापना का कोई इतिहास यहाँ के पुजारियों को ज्ञात नहीं है. बस इतना बताया जाता है कि वर्षो पूर्व यहाँ कोई तपस्वी बाबा तपस्या किया करते थे. बाद में धीरे धीरे स्थानीय पडोसी गाँव के लोग यहाँ आने लगे.




कभी बिलकुल बीहड़ में स्थित इस शक्ति-पीठ में इन दिनों काफी विकास कार्य हुए हैं. ” श्री इडाना माँ मंदिर ट्रस्ट के सरंक्षक श्री लवकुमार सिंह कृष्णावत (कुराबड) ने बताया कि विगत कुछ वर्षों में भामाशाहों के सहयोग एवं मंदिर के चढ़ावे से यहाँ धर्मशाला निर्माण, गौशाला निर्माण, रोगियों को मुफ्त भोजन एवं आवास सहित और कई जनोपयोगी कार्य करवाए गए हैं.

प्रमुख स्थल- माँ का दरबार, अखंड ज्योति दर्शन, धुनी दर्शन, गौशाला, विस्तृत भोजनशाला, रामदेव मंदिर आदि.

प्रमुख दर्शन - प्रातः साढ़े पांच बजे प्रातः आरती, सात बजे श्रृंगार दर्शन, सायं सात बजे सायं आरती दर्शन यहाँ प्रमुख दर्शन हैं.  इस शक्ति पीठ की विशेष बात यह है कि यहाँ माँ के दर्शन चौबीस घंटें खुले रहते है. सभी लकवा ग्रस्त रोगी रात्रि में माँ की प्रतिमा के सामने स्थित चौक में आकर सोते है. दोनों नवरात्री यहाँ भक्तों की काफी भीड़ रहती है. इसके अतिरिक्त सभी प्रमुख त्यौहार यहाँ धूमधाम से मनाये जाते है.

कैसे पहुचें-  सूरजपोल से प्रातः उपनगरीय बस सेवा उपलब्ध. इसके अतिरिक्त कुराबड-बम्बोरा  मार्ग पर जाने वाले वाहनों से बम्बोरा पहुचकर वहा से जीप द्वारा शक्तिपीठ पंहुचा जा सकता है. स्वयं के वाहनों से जाने पर देबारी- साकरोदा- कुराबड- बम्बोरा होते हुए शक्ति पीठ पंहुचा जा सकता है. (दुरी- 60  किलोमीटर)
(छाया चित्र सहयोग- श्री यश शर्मा, उदयपुर )

Saturday, December 17, 2011

बड़ा भावमय त्यागमय बेटियों का संसार…

नाम ख़ुशी …. पांच साल की बच्ची…पहली कक्षा में पढ़ती है… अपने नाम के अर्थ को अभी नही समझती…इसके परिवार में फिलहाल किसी का कोई पता नहीं… कैसी हो बेटा ?…पूछने पर मुस्कुराती है…फिर अगले ही पल कभी नीचे  देखती देखती शुन्य में झाँकने लगती है…बीच बीच में कभी अपने सिर को भी खुजा लेती है… 1 से 20 तक इंग्लिश में गिनती आती है…. ट्विंकल- ट्विंकल लिटिल स्टार भी गाती है ये छोटी सी स्टार…ज़िन्दगी की राह पर अपने कदम बढाती …ख़ुशी .
इशिका… जब दो साल की थी तब दिल्ली के मोरी गेट फुटपाथ से समिति के निदेशक गिरिजा शंकर शर्मा इसे यहाँ लेकर आये. माँ- पिता- बहिन…सब यहीं मिले… नाम भी यहीं मिला……आज इशिका  बारह वर्ष की है..  सातवीं में पढ़ती है…क्लास की मोनिटर है…लडको की तरह बाल रखती है…चंचल है पर अंदाज़ पूरा लडको जैसा….
“क्या लिखूं कि वो परियों का रूप होती हैं…
कि कडकडाती ठण्ड में सुहानी धुप होती है….
वो होती हैं चिड़िया की चहचाहट की तरह…
या कोई निश्छल खिलखिलाहट होती हैं…”


ख़ुशी और इशिका जैसी कई बच्चियां इस दुनिया में है…. इनकी आँखें भी कभी गुडिया मांगने की इच्छा रखती होंगी… माँ की साडी का पल्लू पकड़कर पीछे पीछे भागने की इच्छा या फिर पापा से आँखें न मिलाते हुए एक “5 स्टार चोकलेट” की चाहत…. और भी बहुत कुछ…. पता चला कि उदयपुर से 50 किलोमीटर दूर झाडोल में एक निराश्रित बालघर चलता है जहाँ कई सारी बच्चियां आवासीय विद्यालय में रहती है…सोचा आज “World Girls child Day” की पूर्व-संध्या उन बच्चियों से ही मिला जाये….उनके साथ खुशियाँ बांटी जाये…जब उदयपुर से चले तो तो मन में भाव  थे कि किसी ऐसे स्कूल का दौरा होगा जहाँ बच्चे मैली-कुचैली आसमानी शर्ट और खाकी स्कर्ट पहने मिलेंगी…बाल बेतरतीब, बहती नाक….और भी बहुत कुछ दृश्य पहले ही संजो लिए थे… 1.5 घंटे की ड्राइव के बाद राजस्थान बाल कल्याण समिति का नामपट्ट दिखाई दे ही गया..केम्पस की शांति देखकर महसूस हुआ शायद देर हो गयी…स्कूल की छुट्टी हो गयी होगी.पर स्कूल तो चल रहा था. व्यवस्थापिका चंद्रिकाजी,प्रिंसिपल नीलम जी जैन ने हमारा स्वागत किया. आश्चर्य- केम्पस की सफाई, सलीके से जमे बच्चियों के जूते, अनुशाशन और…बच्चियों की यूनिफार्म…सभी कुछ हमारी उम्मीदों से पूरी तरह अलग…



    
शुरूआती जानकारी लेने के बाद प्रिंसिपल नीलम जी, वार्डन मंजू जी और नीलू जी के साथ शुरू हुआ स्कूल को विजिट करने का दौर… कक्षा में बच्चियों ने खड़े होकर एक स्वर में “good afternoon sir” कहते हुए हमारा स्वागत किया.मन में ख़ुशी भी थी और हूक भी उठी… क्यों ईश्वर ने इन छोटी छोटी बच्चियों के सर से इतना जल्दी परिजनों का साया उठा लिया…क्या ये ईश्वर कि इन मासूमो के साथ क्रूरता नहीं ??? किसी ने अपने पिता के होने के अहसास को नहीं संजोया तो कोई माँ के आँचल की ममता को आत्मसात नहीं कर पायी. सहसा नज़र पड़ी- दो बच्चियां..शक्ल एक सी..पता चला- जुडवा है.मीनू और तनु. पापा रहे नहीं और माँ ने कोई और घर देख लिया…बच्चियां  नियति के भरोसे. इनका चाचा इन्हें यहाँ छोड़ गया. तब से अब तक…दो साल हो गए…कोई मिलने नहीं आया.. दोनों सात साल की है. तीसरी कक्षा में पढ़ती है. नीलम जी बता रही थी कि बड़ी होनहार है दोनों… अपने सारे काम आप ही कर लेती है. अपने बर्तन खुद साफ़ करती है..कपडे खुद धोने की कोशिश…और अपना बिस्तर भी खुद तह करती है…और हाँ मौका मिलने पर कभी कभी दोनों में झगडा भी…. मैं सोच में पड़ जाता हूँ …क्या समय ने इन्हें सब सिखा दिया है ?? जवाब देने के लिए शायद मस्तिष्क तैयार नहीं है…

रेखा… 14 साल की. झाडोल के ही गोगामारी गाँव की रहने वाली . पिताजी शराब के शौक़ीन और एक दिन नशे में ऐसे सोये कि फिर कभी नहीं उठे. माँ उदयपुर जाकर मजदूरी करे या रेखा को संभाले…सो रेखा अब इसी विद्यालय में रहती है. त्योहारों पर इसकी माँ इसे लेने आती है…
गीता खराडी( 4 वर्ष ) का मानना है कि उसके मम्मी-पापा खूब सारे पैसे कमाने गुजरात गए है..एक दिन आयेंगे और उसे ले जायेंगे..उस मासूम को नहीं पता कि उसका परिवार एक सड़क हादसे की भेंट चढ़ चूका है और खून का कोई रिश्तेदार उसको अपनाने को तैयार नहीं…
237 बच्चियां… और लगभग उतनी ही कहानियाँ…पर सबका मूल एक…





“ये बच्चियां पढाई के अलावा और क्या क्या करती हैं..?? यश की आवाज़ मेरी तन्द्रा को अचानक तोडती है. वार्डन नीलू जी ख़ुशी ख़ुशी उनकी खेलकूद-सांस्कृतिक आदि गतिविधियों के बारे में बताती है. मैं गीत सुनाने की फरमाईश करता हूँ.. एक फुसफुसाहट होती है और स्वर गूंजने लगते है…..
“बापू हमारे…. स्वर्ग सिधारे…
छोड़ चलें हमको…. किसके सहारे…”
किंकर्तव्यमूड होकर मैं और यश सोचने को मजबूर हो जाते है कि गांधीजी के बहाने ये बच्चियां किस दर्द को बयाँ कर रही है….
लाख लाख शुक्रिया अदा करता हु राजस्थान बाल कल्याण समिति के निदेशक श्री गिरिजा शंकर शर्मा जी को..जिनका यह भागीरथ प्रयास इन बच्चियों के जीवन में सतरंगी रंग लाने की सार्थक पहल कर रहे हैं. तो क्या हुआ, ‘गर केंद्र सरकार ने पिछले सत्र में मदद भेजने में देर की और शर्मा जी ने अपनी “ऍफ़.डी” तोड़कर जमा पूँजी को इन बच्चियों के वस्त्र लाने में खर्च करने के लिए दो पल भी नहीं सोचा. नीलम जी बताती है कि एक बार उनकी वार्षिक रिपोर्ट दिल्ली में अटक गयी. अफसर बोले कि आप काम इतना अच्छा करते हो फिर रिपोर्ट किसी “एक्सपर्ट” से क्यों नहीं बनवाते..?? शर्माजी उनको जवाब देते है…एक्सपर्ट को देने वाले पैसो से किसी बच्ची का जीवन नहीं सुधार दूंगा??

इस स्कूल में सब कुछ है…खुशियाँ है…गम भी है.. एक परिवार है..तो बच्चियों की प्यार भरी तकरार भी…टीचर जी कभी स्केल से पिटाई भी करती है..तो वार्डन माँ की याद आने पर गले से भी लगा लेती है…
व्यवस्थित कक्षा कक्ष और छात्रावास के कमरे है तो साफ़-सुथरे शौचालय भी…रसोई में बाहर हवा फेकने वाला पंखा लगा है तो करीने से लगे पौधे..बहुत अच्छे लगते है. सफाई और अनुशाशन तो दिल जीत लेते है. यहाँ इतना अच्छा शायद इसलिए लगता है क्योकि यहाँ “लक्ष्मियाँ” बसती है.
बड़ा भावमय त्यागमय बेटियों का संसार…
प्रेम पगा नित मन मगर, नयन अश्रुओं की धार…

शाम हो रही थी…हमें उदयपुर लौटना था. अँधेरा छा रहा था. पर अभी अभी उजाले की इतनी किरणें एक साथ देखी थी कि अँधेरे का भय नहीं था. हमारी बाईक स्टार्ट हो चुकी थी…कई जोड़ी आँखें निर्मिमेष हमें दूर तक निहार रही थी…….
ना रोना तू कभी बेटी , सदा ही हंस के तुम जीना….
लगे ‘गर चोट तुमको, उसको भी चुपचाप सहना…
चलते चलते…..
राजस्थान बाल कल्याण समिति फिलहाल राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से 52  शिक्षा संकुल चला रही है. 1981 में 11 बच्चों के साथ शुरू हुआ सफ़र निर्विवाद रूप से बहुत बड़ा रूप ले चूका है. समिति के संस्थापक श्री जीवतराम शर्मा 80  पार हो चुके है. आधे शारीर में लकवा है पर चेह्कते हुए कहते है- अभी बहुत काम करना है… i am retired but not tired. इन्हें ख़ुशी मिलती है जब इनका पढाया हुआ बच्चा कही ऊँचे मुकाम पर होता है और इन्हें पहचान लेता है.
मेरा सर श्रृद्धा से झुक जाता है.
**बच्चियों के नाम परिवर्तित किये गए है
** छायाचित्र सहयोग: श्री यश शर्मा, उदयपुर
**यह आलेख www.udaipurblog.com पर भी प्रकाशित हो चुका है.






Wednesday, December 14, 2011

आप सुन रहे है आर. जे. प्रदीप को.....!!!!

दुनिया के सबसे खुबसूरत शहर की खुबसूरत सुबह की शुरुआत एक आवाज़ से हुआ करती है...
आप सुन रहे है ...... ऍफ़.एम्. .. और बन्दे को आर.जे. प्रदीप कहते है... जी हाँ  एक प्यारी सी मुस्कराहट के धनी....जिसे शहर का एक ऑटो वाला भी ताल्लुक रखता है तो किसी महंगे फ्लेट में रहनी वाली एक आंटी भी...
जब से उदयपुर में ऍफ़.एम्. आया...तब से ये आवाज़ उदयपुर की एक पहचान सी बन गयी है...
जब कभी हम खुद को अपनी माटी से दूर महसूस कर रहे होते हैं...तभी स्वर सुनाई देता है... "उदयपुर थानों ध्यान कठिने... आपरो प्रदीप अठिने.." कभी ठेठ देहाती शब्दों का अम्बार तो कभी ऐसी बातें कि लगता है कोई बड़े मेनेजमेंट का अफसर रु-ब-रू हो रहा है...
हमारे हर दुःख-सुख में जो आवाज़ हमारे साथ महसूस होती है... हर बड़े मॉल और हर एक लोकल ऑटो में सुनी जाने वाली आवाज़....

एक आवाज़, जो हर बार हमें एक रास्ता दिखा रही होती है..." दोस्तों...जब कभी हम पानी की  सतह पर तैर रहे बुलबुले की तरह टूट रहे होते हैं...फिर बन रहे होते हैं...तब याद रखो...कोई है...जो सिर्फ आपके लिए जी रहा है..."
जब कभी खुद को अकेला महसूस कर रहे होते है...तो स्वर सुनाई देते है... " दोस्तों अगर अकेलापन साल रहा है तो फ़तेह सागर जाओ... कुछ वक़्त खुद के लिए बिताओ..मोबाईल बंद कर दो.. और आस-पास की आवाज़ से भी कुछ देर के लिए बेखबर हो जाओ... तुम कुछ हटकर...कुछ और ज्यादा पाकर ही वहा से लौट कर आओगे, मेरा विश्वास है ..."
क्या हमने कभी सोचा भी कि वो हमारी आर. जे. प्रदीप की आवाज़ हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा ही बन जाएगी.....
मैं रातों के अंधेरो में खोया सितारा हूँ..
हजारो-लाखों में मैं भी एक आवारा हूँ..
लाख कह दे, ज़माना मुझे तेरा पागल,
तुम ठुकराओगे, फिर भी मैं तुम्हारा हूँ...
हमेशा गुनगुनाने वाले इस शख्स ने ज़िन्दगी में कम दुःख नहीं देखा... अपने जूनून को आयाम देने से पहले परिवार वालो के ताने भी सुने तो कभी अपनी शाम हिरन मगरी के ऑटो स्टेंड पर भी बिताई... किसी मोबाईल स्टोर में सेल्समेन बनने में भी गुरेज नहीं किया... तो मजदूरों के साथ किसी ट्रक को ख़ाली करने में भी हाथ आजमाया... शायद इसीलिए प्रदीप की आवाज़ में इतने रंग देखने को मिलते है... सुखेर में एक चाय की थडी पर जब पटेल जी वक़्त पर दूध लेकर नहीं आते तो थडी वाले पंडित जी प्रदीप को फोन करते है... और पटेलजी दूध लेकर पहुच जाते है... प्रदीप की गाडी सुबह ख़राब हो जाति है और किसी ऑटो  में बैठकर जब स्टूडियो आ रहे होते है तो ऑटो वाला भी बेझिझक कोई डाईलाग सुनने की फरमाइश करने लगता है...
ज़िन्दगी में अकेला ऐसा इंसान मिला, जो सभी का दोस्त है... कभी किसी के मुंह से उसके लिए बुराई नहीं सुनी... प्रदीप को एक कबाड़ी भी उसी स्टाइल में हाथ हिलाता है, जैसे कोई सभ्य महंगी कार में बैठा रईस...
इतना विविध रंगों वाला इंसान कम ही देखने को मिलता है...
 जब कभी कोई सुनने वाला एक बार प्रदीप को फोन कर दे...दो उसकी आवाज़ उस कंप्यूटर में हमेशा के लिए फीड हो जाती है...जी हाँ..प्रदीप अगली बार उस लिसनर को उसके नाम से पुकारेगा...

प्रदीप, एक ऐसी शख्सियत..जिसमे हजारो शख्सियतें... हजारो तहजीबें...
प्रदीप तो बस यही कहता मिलता है कि...
"जितना दिया सरकार ने मुझको...
उतनी मेरी औकात नहीं...
ये तो करम है उनका...
वर्ना मुझमे ऐसी कोई बात ही नहीं..."

किसी कोलोनी से कोई गरिमा फोन करती है और कहती है... प्रदीप, तुम अकेले हो जिसने उदयपुर को एक कर दिया... पहले लोग किसी को फोन करने में झिझकते थे....पर रेडियो पर तुमको फोन करनेमे किसी को झिझक नहीं होती... तुम हमारी  आवाज़ हो...

सलाम प्रदीप....

****यह आलेख www.udaipurblog.com पर भी प्रकाशित हो चुका है.****